TISA -Maihar Chapter
(It is an association of Indian people who stammer. Better attitudes through knowledge! contect = 9300273703,07674234392)
Monday, July 22, 2013
1 - सबसे पहले आप को PP
इस बैच में नीचे लिखी सुविधाए दी जाएगी १- 15 दिन से ३०दिन का टाइम आप की प्रॉब्लेम के अनुसार टाइम लग सकता है
10 - बोउन्सिंग, acceptance, टेक्निक से डर कण्ट्रोल करवाया जाएगा इसमे 5 से 10 दिन लग सकते है
Friday, October 8, 2010
आर्थिक ,सामाजिक, पारिवारिक ,मदद
आर्थिक
मैंने कई MLM कपानी में काम किया और अनुभव किया कि कुछ Multi level Markeing (MLM ),बहुत ही फायदे मंद है ख़ास क़र हकलाने वालो के लिय
कैसे १- प्रत्येक सप्ताह क्रमबाध्य तरीके से मंच पर बोलने के लिए अवसर प्रदान करती कई
२ कई नये लोग मीटिंग में होते है इनमे empathy कि भावना होती है अतः ये आप कि बात को ध्यान से सुनते हाउ
३- हकलाने वाले
सामाजिक, पारिवारिक ,madad
मैंने कई MLM कपानी में काम किया और अनुभव किया कि कुछ Multi level Markeing (MLM ),बहुत ही फायदे मंद है ख़ास क़र हकलाने वालो के लिय
कैसे १- प्रत्येक सप्ताह क्रमबाध्य तरीके से मंच पर बोलने के लिए अवसर प्रदान करती कई
२ कई नये लोग मीटिंग में होते है इनमे empathy कि भावना होती है अतः ये आप कि बात को ध्यान से सुनते हाउ
३- हकलाने वाले
सामाजिक, पारिवारिक ,madad
Saturday, August 28, 2010
हकलाहट : दिल पे मत ले यार . . . !
दुःख उस समय और ज्यादा होता है जब हिंदी फिल्मों में हकलाहट को हंसी के साधन के रूप में परोसा जाता है. आजकल बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों में कहीं न कहीं पात्रों से हकलाहट का अभिनय करवाने की परंपरा सी चल पडी है. शाहरूख खान ने तो कई फिल्मों में हकलाहट का अभिनय किया है और हकलाहट वाले उनके डायलाग बहुत मशहूर रहे हैं.
पर यहाँ एक अहम् सवाल यह है की आखिर कब तक हकलाहट दोष को मनोरंजन के रूप में समाज उपयोग करता रहेगा. इस दिशा में मीडिया को आगे आना चाहिए. हमारा समाज फिल्मों और मीडिया से बहुत कुछ सीखता है और उससे काफी हद तक प्रभावित भी होता है, इसलिए फिल्मों, टीवी धारावाहिकों में हकलाहट को हँसी के रूप में प्रस्तुत करना बंद करना चाहिए. और जहाँ तक संभव हो सके हकलाहट दोष के प्रति सकारात्मक बातें दिखने से समाज में सही सोच का विकास होगा.
और हाँ... अगर आपको देखकर कोई हँसता भी है तो दिल पे मत ले यार . . . अकसर हम लोग स्पीच की कई तकनीको का इस्तेमाल करने में संकोच करते हैं की सामने वाला क्या सोचेगा. मै यहाँ कहना चाहता हूँ की सामने वाला हँसने के के अलावा और क्या करेगा? स्पीच की तकनीको का इस्तेमाल कर सही तरीके से बोलने की कोशिश करने पर आपको कोई थप्पड़ नहीं मारेगा और और ना ही सजा देगा, लेकिन बार-बार गलत तरीके से बोलकर और संकोच कर हम लोग जरूर अपनी वाणी को ख़राब करते है.
आपकी हकलाहट को सिर्फ आप ही दूर कर सकते हैं.
मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने कहा है :-
कौन कहता है आसमान से सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों...
हकलाना को दोस्त कैसे बनाये
जब हम ठीक बोलते है तब बहुत खुस होते है , और अटक गए तो बहुत दुखी होते है ,| आप को पता है ठिक बोलने कि कोशिश करना ही हकलाना है हम हमेशा यही सोचते है कि ठीक से बोलु और अटक ही जाते है | आप सोचिये १०-२०-३० वर्ष से आप ठीक बोलने ही सोचते है और रिजल्ट हकलाना होता है , अब यदि और सोचगे कि मै हकलाउगा नहीं तो रिजल्ट भी वाही आयेगा जो १०-२०-३०- वर्ष से आ रहा है किसीने कहा है कि "नये रिजल्ट के लिए नया वर्क करना पड़ता है " आप बहुत वर्ष ठीक बोलने का प्रयाश किया अब तरीका बदल क़र देखिय अर्थात स्वाविकार करके bouncing करके बोलिए तब आप पायेगे कि जिसे आप १०-२०-३० वर्ष से ढूढ़ रहे है वह आप के ही पास है | जिसे आप दुस्मन मान रहेथे वह आप का दोस्स्त है ,जिसे भागवान से आप को गिफ्ट में दिया है | आप को गर्व होना चाहिए कि आप को सामान्य व्यक्ति से अधिक भागवान आप को गिफ दिया है | लेकिन हम इसे पहचान नहीं पाए और अपना दुस्मन मान ते रहे आप एक बार हकलाहट को जानबूझ क़र करके तो देखोआप बहुत रिलेक्स पायेगे
अब सवाल उठता है के दोस्त कैसे बनाये
१- सबसे पहले अपनी बोलने कि स्पीड थोड कम क़र लीजिये - यहाँ पर मै बताना चाहुगा कि स्पीड धीमी से मेरा मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप गाने जैसा बोले में----------- आ--------ज----- खा-----ना----- खा----उगा------
आप को स्पीड इतनी धीमी करना है कि जब आप स्वयं अपनी आवाज सुने तो आप के समझ में आराम से आये | आप तौर पर देखा यहाँ है कि हकलाने वाले लोग बहुत स्पीड बोलते है यह भी हकलाहट का एक बहुर बड़ा कारण होती है अतः स्पीड को इतना कण्ट्रोल करो कि आप के समझ में तो आये कि मै क्या बोलता हू यदि आप के ही समझ में नहीं आएगा तो दुसरे आप कि आवाज को कैसे समझ सकते है | स्पीड इतनी होना चाहिए कि------
१ आप कि आवाज आप के स्वाम सुनने पर आप को सही समझ में आये
२-आप को जो बोलना हो उसे समझने ,सोचने , और सुधारने क़र समय मिले
३- स्पीच ओर्गंस को वर्क करने का समय मिले
२-स्पीच ओर्गंस को काबू करे
१- यदि आप को प्रारंभ में ही बोलने का विश्वास नहीं होता है तो आप
अ---बोउन्सिंग करके आवाज निकलना प्रारंभ कीजिये मेमेमेमेमेरा नानानाम विविव्केंद्र है यहाँ पर हमने मेरा शब्द कि पहली ध्वनि को रिपीट किया गया है ( ध्यान रखिये पहले अक्षर को रिपीट नहीं करना है म्मम्म नहीं बोलना है मेमेमेमेमेरा बोलना है |
बी ---जब आप ऐसा करेगे तो आप कभी कभी सचमुच हकलाने लगेगे बार बार करते रहो पहले उन सब्दो में बोउन्सिंग करो जिसे आप सरल मानते है ,फिर धीरे धीरे कठिन शब्दों को भी रिपीट करके बोलो जैसे आआअलहबद कभी २ बार कभी ४ बार कभी १० बार रिपीट करो
c --- यहाँ पर में batauga कि
अब सवाल उठता है के दोस्त कैसे बनाये
१- सबसे पहले अपनी बोलने कि स्पीड थोड कम क़र लीजिये - यहाँ पर मै बताना चाहुगा कि स्पीड धीमी से मेरा मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप गाने जैसा बोले में----------- आ--------ज----- खा-----ना----- खा----उगा------
आप को स्पीड इतनी धीमी करना है कि जब आप स्वयं अपनी आवाज सुने तो आप के समझ में आराम से आये | आप तौर पर देखा यहाँ है कि हकलाने वाले लोग बहुत स्पीड बोलते है यह भी हकलाहट का एक बहुर बड़ा कारण होती है अतः स्पीड को इतना कण्ट्रोल करो कि आप के समझ में तो आये कि मै क्या बोलता हू यदि आप के ही समझ में नहीं आएगा तो दुसरे आप कि आवाज को कैसे समझ सकते है | स्पीड इतनी होना चाहिए कि------
१ आप कि आवाज आप के स्वाम सुनने पर आप को सही समझ में आये
२-आप को जो बोलना हो उसे समझने ,सोचने , और सुधारने क़र समय मिले
३- स्पीच ओर्गंस को वर्क करने का समय मिले
२-स्पीच ओर्गंस को काबू करे
१- यदि आप को प्रारंभ में ही बोलने का विश्वास नहीं होता है तो आप
अ---बोउन्सिंग करके आवाज निकलना प्रारंभ कीजिये मेमेमेमेमेरा नानानाम विविव्केंद्र है यहाँ पर हमने मेरा शब्द कि पहली ध्वनि को रिपीट किया गया है ( ध्यान रखिये पहले अक्षर को रिपीट नहीं करना है म्मम्म नहीं बोलना है मेमेमेमेमेरा बोलना है |
बी ---जब आप ऐसा करेगे तो आप कभी कभी सचमुच हकलाने लगेगे बार बार करते रहो पहले उन सब्दो में बोउन्सिंग करो जिसे आप सरल मानते है ,फिर धीरे धीरे कठिन शब्दों को भी रिपीट करके बोलो जैसे आआअलहबद कभी २ बार कभी ४ बार कभी १० बार रिपीट करो
c --- यहाँ पर में batauga कि
Monday, August 23, 2010
International Stammering Awareness Day ( ISAD ) 2010
International Stammering Awareness Day ( ISAD ) 22 \10\2010
दोस्तों क्या आप को मालूम है कि दुनिया में International Stammering Awareness Day ( ISAD ) 201० यानि हकलाहट दिवस मनाया जाता है ,पिछले वर्ष हम लोगोने छोटे स्तर में इसे मनाया था इस वर्ष हम इसे बड़ी धूम धाम से सेलिब्रेट करने कि कोशिश क़र रहे है| मै सभी हकलाने वाले व्यक्तिओ और पेरेंट्स को सदर आमंत्रित करता हू मैहर शहर भारत के सेन्ट्रल बिंदु पर स्थित है मैहर के बारे में अधिक जानकारी जैसे ट्रेन नेम ,लांज ,होटल लोकेसन आदी के लिए क्लीक करो अधिक जानकारी भाग लेने के लिए नियम व शर्ते
१ -सभी लोगो को आने जाने का किराया एवं खर्चे स्वयं सहेन करना होगा
२- रुकने के लिए यहाँ पर बहुत लाज और धर्मशाला है अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करो
इसदिन बहुत भीड़ रहती है क्युकी भारत के कोने कोने से लोग इस डे को मानाने यहाँ आते है इस लिए अपनी सीट एडवांस बुक करवा लीजिये २०० रूपये से १००० रूपये प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कि लाज उपलब्ध है
आप 09300273703 , 09200824582 , पर बात करके सीट बुक करवा लीजिये
३- आप को २२ एवं २३ octomber को रहना है तो २ रात २ दिन का समय ले क़र आये
४- यह प्रोग्राम आप का आपना है विल्कुल फ्री है
प्रोग्राम कि रूप रेखा
१- यह प्रोग्राम दूसरी बार धूम धाम से मनाया जा रहा है
२ यह प्रोग्राम आप का आपना है विल्कुल फ्री है
३- इस प्रोग्राम में भारत कि ही नहीं वल्कि बिश्व के लोगो कि सामिल होने कि आशा है
४- प्रोग्राम दो दिन का होगा
५- मैहर के विधायक नेता डोक्टर , एवं जाने मने लोग भी हिस्सा लेगे
५ प्रोग्राम में एक डिनर एवं एक लंच संस्था विल्कुल फ्री करेगी
५ इस प्रोगाम में हकलाना के वारे में विश्रित चर्चा होगी
६- जो लोग हकलाहट को स्वाविकार क़र के उचाईयो को छू रहे है उन लोगो को एक प्रमाण पत्र एवं 1000 / रुपए नगद दिया जायेगा इसके लिए जो व्यक्ति इक्छुक हो वह ऑनलाइन आवेदन क़र सकता है
टाइम टेबल एवं अन्य जानकारी शीघ्र प्रकाशित कि जाएगी
Saturday, August 21, 2010
किसी इन्सान के सामने स्वाविकार करने का मेरा पहला मौका था
दोस्तों आज हम आप से बात करेगे कि हकलाहट को अपना नौकर कैसे बनाया जाय |
१-पहला कदम यही है कि आप हकलाना को स्वबिकार करो कि हां मै हकलाता हू | यहाँ एक बात मै आप को साफ करना चाहता हू कि स्वाविकार करने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप हाथ पर हाथ रखे बैठ जाओ और किस्मत को या भगवन को कोसते रहो | स्वाविकार का मतलब कि हां मै हकलाता हू ,सभी से खुल क़र बात क़र सकता हू , मै आपनी स्पीच को improve क़र रहा हू ,मेरा मतलब यह है कि मै कही भी हकलाना के वारे में बात क़र सकता हू ,हकलाना पर बात करते समय भागुगा नहीं ,सर्म नहीं करुगा, आँखे नहीं चुराउगा, ,आत्म ग्यालिन नहीं लूगा | मै खुल क़र बात क़र सकता हू
दोस्तों स्वाविकार करना इतना सरल नहीं है जितना कि लिखना सरल है आप भी मेरी तरह कुछ टिप्स अपना सकते है
मै सबसे पहले, अन्दर से, मन से, संकल्प से , ठन्डे दीमक, से सोचा कि मै कब तक भागुगा हकलाना से
मै सात दिन तक अपनी कंट्रोलिंग किया -----आदतों को अपना गुलाम बनाया आदतों का गुलाम स्वयं नहीं बना
इसके लिए एक घंटे मौन ब्रत रहा ,मन करता थोड़ी बोलु फिर कोत्रोल करता इससे मेरे अन्दर एक प्रकार कि इनर्जी आई के हां मै अपनी बोदी को कण्ट्रोल क़र सकता हू| लोगो के सामने यह कहना मेरे बस में नहीं था कि मै हकलाता हू ,हिम्मत बढाने के लिय मै 10 दिन तक अकेले में ही कहता कि हां मै हकलाता हू ,फिर दिवालो से कहना चालू किया कि हां मै हकलाता हू ,मदिरो में भगवन के सामने कई बार कई दिनों तह roj ३० मिनट मंदिर जाता और कहता हे भगवान मुझे इतनी सकती दे कि मै इसे स्वविकार क़र सकू ,फिर बंदरो गयो भैसों कुत्ता के सामने स्वाविकार किया कि हां मै हकलाता हू | कई बार एसा भी हुआ कि इन जानवरों के सामने बोलने में कोई प्रॉब्लम नहीं आई ,लेकिन जैसे ही मानव के पास गया कि आज तो इस व्यक्ति से हकलाहट के वारे में चर्चा करू वैसे ही डर गया और विना चर्चा के लौट आया तब एक उपाय और सोचा कि अपने से छोटे लोगो से - हकलाहट के वारे में बात करना चाहिए तब छोटे बच्चो से मिला और इस प्रकार बात किया
अआप किसी हहक्लाने वाले लोगो से मिले हो -----चंचल बालक--मुस्कुराकर मेरी ही स्टाईल करके बोलो हाहाहा एक लड़का मेमरी स्कूल हहाये
मै बोला उस्स्सका नानाम क्क्क्य है वहबोला विविव्जय
मै कहा कि मै तो हकलाता हू इसलिए एसा बोलता हू , पर आप ऐसे क्यों बोलते हो? बालका जवाब दिया मजा आती है
---- यही मेरी उम्मीद थी मै बालक को समझाया कि आप को तो मजा आ रहा है पर हुको बहुत बेकार लग रहा है तब बालक सिरिअस हो गया ,यह किसी इन्सान के सामने स्वाविकार करने का मेरा पहला मौका था हू इसलिए
१-पहला कदम यही है कि आप हकलाना को स्वबिकार करो कि हां मै हकलाता हू | यहाँ एक बात मै आप को साफ करना चाहता हू कि स्वाविकार करने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि आप हाथ पर हाथ रखे बैठ जाओ और किस्मत को या भगवन को कोसते रहो | स्वाविकार का मतलब कि हां मै हकलाता हू ,सभी से खुल क़र बात क़र सकता हू , मै आपनी स्पीच को improve क़र रहा हू ,मेरा मतलब यह है कि मै कही भी हकलाना के वारे में बात क़र सकता हू ,हकलाना पर बात करते समय भागुगा नहीं ,सर्म नहीं करुगा, आँखे नहीं चुराउगा, ,आत्म ग्यालिन नहीं लूगा | मै खुल क़र बात क़र सकता हू
दोस्तों स्वाविकार करना इतना सरल नहीं है जितना कि लिखना सरल है आप भी मेरी तरह कुछ टिप्स अपना सकते है
मै सबसे पहले, अन्दर से, मन से, संकल्प से , ठन्डे दीमक, से सोचा कि मै कब तक भागुगा हकलाना से
मै सात दिन तक अपनी कंट्रोलिंग किया -----आदतों को अपना गुलाम बनाया आदतों का गुलाम स्वयं नहीं बना
इसके लिए एक घंटे मौन ब्रत रहा ,मन करता थोड़ी बोलु फिर कोत्रोल करता इससे मेरे अन्दर एक प्रकार कि इनर्जी आई के हां मै अपनी बोदी को कण्ट्रोल क़र सकता हू| लोगो के सामने यह कहना मेरे बस में नहीं था कि मै हकलाता हू ,हिम्मत बढाने के लिय मै 10 दिन तक अकेले में ही कहता कि हां मै हकलाता हू ,फिर दिवालो से कहना चालू किया कि हां मै हकलाता हू ,मदिरो में भगवन के सामने कई बार कई दिनों तह roj ३० मिनट मंदिर जाता और कहता हे भगवान मुझे इतनी सकती दे कि मै इसे स्वविकार क़र सकू ,फिर बंदरो गयो भैसों कुत्ता के सामने स्वाविकार किया कि हां मै हकलाता हू | कई बार एसा भी हुआ कि इन जानवरों के सामने बोलने में कोई प्रॉब्लम नहीं आई ,लेकिन जैसे ही मानव के पास गया कि आज तो इस व्यक्ति से हकलाहट के वारे में चर्चा करू वैसे ही डर गया और विना चर्चा के लौट आया तब एक उपाय और सोचा कि अपने से छोटे लोगो से - हकलाहट के वारे में बात करना चाहिए तब छोटे बच्चो से मिला और इस प्रकार बात किया
अआप किसी हहक्लाने वाले लोगो से मिले हो -----चंचल बालक--मुस्कुराकर मेरी ही स्टाईल करके बोलो हाहाहा एक लड़का मेमरी स्कूल हहाये
मै बोला उस्स्सका नानाम क्क्क्य है वहबोला विविव्जय
मै कहा कि मै तो हकलाता हू इसलिए एसा बोलता हू , पर आप ऐसे क्यों बोलते हो? बालका जवाब दिया मजा आती है
---- यही मेरी उम्मीद थी मै बालक को समझाया कि आप को तो मजा आ रहा है पर हुको बहुत बेकार लग रहा है तब बालक सिरिअस हो गया ,यह किसी इन्सान के सामने स्वाविकार करने का मेरा पहला मौका था हू इसलिए
Friday, August 20, 2010
मै २६ साल तक महा मुर्ख बना रहा
मै २६ साल तक महा मुर्ख बना रहा | सोचता था बहुत अच्छे से बोलु कही अटक न जाऊ और जितना ठीक बोलने कि इक्छा मन में होती उतना ज्यादा हकलाता | मै सोचता था कि सामने वाले को यह नहीं पता है कि मै हकलाता हू | और हकला गया तो यह जान जायेगा कि बी.के हकला है | पर दुर्भाग्य यह रहा कि मै छुपा कभी नहीं पाया , हर बार सोचता इस बार बहुत बढ़िया बोलूगा, लोगो को बिलकुल पता नहीं चलना चाहिय कि मै हकलाना हू , और फिर हकलाता , शर्म से लाल पीला हो जाता |
हकिगत यह थी कि सभी को पता था कि बी.के. हकलाता है ,वह कहते इस लिए नहीं थे कि इसे बुरा न लगे | जबकि मै २६ साल तक यही समझता रहा कि लोगो को पता ही नहीं है, कि मै हकला हू | एक दो दिन या दो चार माह कि बात हो तो चलता है ,पर पुरे २६ साल यदि यह गलत फैमि में, मै रहा तो इसे मुर्ख नहीं कह सकते, इसे तो महा मुर्ख कहना ही उचित होगा
दोषतो मै तो महा मुर्ख था, पर आप इस गलती को कभी मत दोहराव ,उठो और कहो हा मै हकलाता हू | थोड़ी सी एक बार सर्म आएगी इसके बाद पूरी जिन्दगी भय मुक्त महसूश करेगे
ढोस्तो सबसे बड़ी समस्या हमारी हकलाहट नहीं है, बल्कि हकला जाने का डर है| जब आप अकेले में होते है तब आप बिलकुल ठीक बोलते है ,पता है क्यों ? क्योकि अकेले में आप के सामने कोई नहीं होता और लोगो के सामने हकलाने का डर मन में नहीं आता है ,और हम ठीक बोलते है |
यदि आप, लोगो से कह दोगे कि हा मै हकलाता हू तो जिस उर्जा को आप शब्दों को बदलने, अगेपीछे करने में खर्च करते है वह आप के सोचने और समझने में खर्च होगी
हां ये बात सच है कि स्वाविकार करना इतना सरल नहीं है , क्योकि मै स्वाम २६ साल तक ,अधिक काम करने के लिए तैयार था ,पेमेंट कम लेने को तैयार था , मार खाने ,गलत जवाब देने के लिए तैयार था,यहाँ तक कि कई बार आत्मा हत्या करने तक तैयार होगया था , पर हकलाना शब्द सुनने तक को तैयार नहीं था
सबसे पहले मै खुद को समझाया कि है मै हकलाता हू ,इसके बाद गाय, भैस, बकरी , दिवालो के सामने कई बार कहा कि हां मै हकलाता हू, इसके बाद अपनी से छोटी उम्र कि लडको के सामने स्वाविकार किया उनसे खुल क़र हकलाहट के बारे में बात किया , फिर रिक्से वाले ,पान ठेले वालो से कहा कि मै हकलाता हू | इन लोगो से इसलिए कहा क्योकि मेरे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मै अपने पापा , मम्मी ,भैया , बहन से कहू कि मै कहलाता हू ,जबकि ऐसा बिलकुल नहीं था कि इनको पता नहीं था , हर क्षण संघर्ष का होता था मेरे लिए ,इसलिए पता होना स्वाभाविक था ,पर मै यही समझता कि पता चल जायेगा तो मेरी बेज्जती होगी , इसलिए आपने आप को समझाना बहुत कठिन था मेरे लिए
आज मै सोचता हू कि जितना उर्जा मै २६ साल तक अपनी खुबसूरत ,भनवान कि देन हकलाहट को छुपाने में खर्च क़र रहा था उससे कही कम उर्जा का उपयोग करके इसे स्वाविकार किया जा सकता है, और हकलाना को अपना नौकर बना क़र रखा जा सकता है | नौकर बना क़र रखने का मजा कि कुछ और है मै अगले ब्लॉग में लिखुगा कि हकलाना को नौकर कैसे बना पाओगे -----------बी.के सिंह मैहर 09300273703 , 09200824582
हकिगत यह थी कि सभी को पता था कि बी.के. हकलाता है ,वह कहते इस लिए नहीं थे कि इसे बुरा न लगे | जबकि मै २६ साल तक यही समझता रहा कि लोगो को पता ही नहीं है, कि मै हकला हू | एक दो दिन या दो चार माह कि बात हो तो चलता है ,पर पुरे २६ साल यदि यह गलत फैमि में, मै रहा तो इसे मुर्ख नहीं कह सकते, इसे तो महा मुर्ख कहना ही उचित होगा
दोषतो मै तो महा मुर्ख था, पर आप इस गलती को कभी मत दोहराव ,उठो और कहो हा मै हकलाता हू | थोड़ी सी एक बार सर्म आएगी इसके बाद पूरी जिन्दगी भय मुक्त महसूश करेगे
ढोस्तो सबसे बड़ी समस्या हमारी हकलाहट नहीं है, बल्कि हकला जाने का डर है| जब आप अकेले में होते है तब आप बिलकुल ठीक बोलते है ,पता है क्यों ? क्योकि अकेले में आप के सामने कोई नहीं होता और लोगो के सामने हकलाने का डर मन में नहीं आता है ,और हम ठीक बोलते है |
यदि आप, लोगो से कह दोगे कि हा मै हकलाता हू तो जिस उर्जा को आप शब्दों को बदलने, अगेपीछे करने में खर्च करते है वह आप के सोचने और समझने में खर्च होगी
हां ये बात सच है कि स्वाविकार करना इतना सरल नहीं है , क्योकि मै स्वाम २६ साल तक ,अधिक काम करने के लिए तैयार था ,पेमेंट कम लेने को तैयार था , मार खाने ,गलत जवाब देने के लिए तैयार था,यहाँ तक कि कई बार आत्मा हत्या करने तक तैयार होगया था , पर हकलाना शब्द सुनने तक को तैयार नहीं था
सबसे पहले मै खुद को समझाया कि है मै हकलाता हू ,इसके बाद गाय, भैस, बकरी , दिवालो के सामने कई बार कहा कि हां मै हकलाता हू, इसके बाद अपनी से छोटी उम्र कि लडको के सामने स्वाविकार किया उनसे खुल क़र हकलाहट के बारे में बात किया , फिर रिक्से वाले ,पान ठेले वालो से कहा कि मै हकलाता हू | इन लोगो से इसलिए कहा क्योकि मेरे अन्दर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मै अपने पापा , मम्मी ,भैया , बहन से कहू कि मै कहलाता हू ,जबकि ऐसा बिलकुल नहीं था कि इनको पता नहीं था , हर क्षण संघर्ष का होता था मेरे लिए ,इसलिए पता होना स्वाभाविक था ,पर मै यही समझता कि पता चल जायेगा तो मेरी बेज्जती होगी , इसलिए आपने आप को समझाना बहुत कठिन था मेरे लिए
आज मै सोचता हू कि जितना उर्जा मै २६ साल तक अपनी खुबसूरत ,भनवान कि देन हकलाहट को छुपाने में खर्च क़र रहा था उससे कही कम उर्जा का उपयोग करके इसे स्वाविकार किया जा सकता है, और हकलाना को अपना नौकर बना क़र रखा जा सकता है | नौकर बना क़र रखने का मजा कि कुछ और है मै अगले ब्लॉग में लिखुगा कि हकलाना को नौकर कैसे बना पाओगे -----------बी.के सिंह मैहर 09300273703 , 09200824582
" हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! "
अकसर हम लोग अपनी हकलाहट की समस्या को छिपाने की कोशिश करते हैं, और कुछ हद तक हम इसमे कामयाब भी हो जाते हैं. मेरे कई परिचित ऐसे हैं जिनसे काफी समय से परिचय है फिर भी उन्हें यह नहीं मालूम की मैं हकलाता हूँ. जहाँ तक मेरा अनुभव रहा है की हम अपनी हकलाहट की समस्या से बेवजह डरते हैं. आमतौर पर सिर्फ 20 प्रतिशत लोग ही हमारी समस्या का मजाक बनाते हैं, अधिकतर तो हमारी समस्या को गंभीरता से लेते हैं, और पूरा सहयोग करते हैं. तो हमें अब से उन 80 प्रतिशत लोगों पर ही ध्यान देना है जो हमारे प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाते हैं.
सबसे पहले तो हमें अपनी बात जल्दी से कह देने की आदत से छुटकारा पाना होगा. पहले हमें सामने वाले की बात को पूरा सुनना है, उसके बाद ही अपनी बात बोलनी है. बात करते समय आराम से बार-बार नाक से सांस लेकर बोलना चाहिए. अपने बोलने की गति को थोडा कम रखना चाहिए.
जिस प्रकार आँखें कमजोर होने पर लोग चश्मा लगते हैं, कान से कम सुनाई देने पर हियरिंग एड लगते हैं, ठीक उसी तरह हमें अपनी हकलाहट की समस्या से शरमाने की जरूरत नहीं है, इसे भी सामान्य तौर पर ले. क्योकि लगभग सभी लोग कभी ना कभी हकलाते ही हैं. मंच पर जाने से पहले कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन उनका डर दूर होते ही वे एक अच्छे वक्ता बन जाते हैं, ठीक इसी तरह हमें अपना डर दूर भगाना है.
अपनी हकलाहट की समस्या से हमें लड़ना नहीं हैं, बल्कि इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना है. लोगों से कहना है- " हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! " पर हकलाहट पर जल्द ही विजय पा लूँगा.
Thursday, May 6, 2010
हकलाने की समस्या होगी दूर, गुणसूत्रों की हुई पहचान
क्या आप जानते हैं दुनिया की 1% आबादी बोलने में दिक्कत महसूस करती है और हकलाती है. 1% कम अनुपात लग सकता है लेकिन दुनिया की कुल आबादी को ध्यान में रखे तो हकलाहट की समस्या से ग्रस्त लोगों की संख्या काफी अधिक है.
अब वैज्ञानिकों ने उन तीन गुणसुत्रों की पहचान कर ली है जो इस विकार के लिए जिम्मेदार होते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन गुणसूत्रों में कोई भी बदलाव समस्याएं उत्पन्न कर सकता है और इससे दिमाग के कुछ हिस्से प्रभावित होते हैं और हकलाने की समस्या उत्पन्न होती है.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित खबर के अनुसार नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन डीफ़नेस एंड अदर कम्युनिकेशन डिसॉर्डर्स (एनआईडीसीडी) की टीम ने इन गुणसूत्रों की पहचान की है और इससे ना केवल हकलाने की बल्कि और भी कई अन्य समस्याएँ ठीक हो सकती है.
हकलाने की समस्या कैसे हो सकती है ठीक?
यदि बच्चों में इस समस्या का पता चल जाए तो थोड़े अभ्यास के द्वारा उसे दूर कराया जा सकता है लेकिन वयस्क व्यक्ति के लिए यह आसान नहीं होता. वयस्क व्यक्ति सांस से जुड़े कुछ व्यायाम के माध्यम से यह विकार दूर कर सकते हैं.
लेकिन इसके साथ ही दो गुणसूत्रों जीएनपीटीएबी और जीएनपीटीजी में बदलाव भी आवश्यक है. इस संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार मात्र अभ्यास से यह विकार पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो सकता.
एनआईडीसीडी के प्रमुख जेम्स बैटी के अनुसार अब इन गुणसूत्रों की पहचान के बाद हकलाने की समस्या का पूर्ण इलाज
अब वैज्ञानिकों ने उन तीन गुणसुत्रों की पहचान कर ली है जो इस विकार के लिए जिम्मेदार होते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन गुणसूत्रों में कोई भी बदलाव समस्याएं उत्पन्न कर सकता है और इससे दिमाग के कुछ हिस्से प्रभावित होते हैं और हकलाने की समस्या उत्पन्न होती है.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में प्रकाशित खबर के अनुसार नेशनल इंस्टीट्यूट ऑन डीफ़नेस एंड अदर कम्युनिकेशन डिसॉर्डर्स (एनआईडीसीडी) की टीम ने इन गुणसूत्रों की पहचान की है और इससे ना केवल हकलाने की बल्कि और भी कई अन्य समस्याएँ ठीक हो सकती है.
हकलाने की समस्या कैसे हो सकती है ठीक?
यदि बच्चों में इस समस्या का पता चल जाए तो थोड़े अभ्यास के द्वारा उसे दूर कराया जा सकता है लेकिन वयस्क व्यक्ति के लिए यह आसान नहीं होता. वयस्क व्यक्ति सांस से जुड़े कुछ व्यायाम के माध्यम से यह विकार दूर कर सकते हैं.
लेकिन इसके साथ ही दो गुणसूत्रों जीएनपीटीएबी और जीएनपीटीजी में बदलाव भी आवश्यक है. इस संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार मात्र अभ्यास से यह विकार पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो सकता.
एनआईडीसीडी के प्रमुख जेम्स बैटी के अनुसार अब इन गुणसूत्रों की पहचान के बाद हकलाने की समस्या का पूर्ण इलाज
Monday, March 1, 2010
हकलाना को ठीक करने का आत्मा विश्वास कैसे आयेगा
दोस्तों आज मै बताउगा की हकलाना को ठीक करने का आत्मा विश्वास कैसे आयेगा | सबसे पहले आप को एक कहानी सुनाता हु
एक लड़का तीसरी कक्षा में पढता है ,वह रोज घर आकर पापा से बोलता है की पापा आज राजू ने मुझे मारा है कल कमल ने मारा है ------->>>>
पापा डेली यही सुनते और मन ही पापा के मन में बच्चे पर दया करते और कहते कास मेरा बालक भी किसी को मरता -------
एक दिन पापा ने बालक को बुलाया और बोले बेटा आप अपनी क्लास में किसी को मार सकते हो बेटा बहुत सोच पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा दूसरी की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा पहली की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके सके |
तब पापा ने कहा एल के जी की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा कोई ऐसा लड़का बताओ जो बीमार हो बालक बोला दिनेश
एक लड़का तीसरी कक्षा में पढता है ,वह रोज घर आकर पापा से बोलता है की पापा आज राजू ने मुझे मारा है कल कमल ने मारा है ------->>>>
पापा डेली यही सुनते और मन ही पापा के मन में बच्चे पर दया करते और कहते कास मेरा बालक भी किसी को मरता -------
एक दिन पापा ने बालक को बुलाया और बोले बेटा आप अपनी क्लास में किसी को मार सकते हो बेटा बहुत सोच पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा दूसरी की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा पहली की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके सके |
तब पापा ने कहा एल के जी की कक्षा में कोई बालक है जिसे आप मार सकते हो बालक फिर से सोचा पर ऐसा कोई नहीं मिला जिसे बालक मार सके
तब पापा ने कहा कोई ऐसा लड़का बताओ जो बीमार हो बालक बोला दिनेश
फिल्म कमीने में शाहिद कपूर हकला बने हैं
फिल्म कमीने में शाहिद कपूर हकला बने हैं, लेकिन किसी हकले की वास्तविक पीड़ा को समझना हो तो कुमार अंबुज की यह कहानी पढि़ए
मैं अपनी सुदूर स्मृति के पहले दिन से ही हकला हूं। 'स्पीच थेरेपी ’ का नाम न तो मेरे घर-गांव में किसी ने सुना था, न कस्बे में। बचपन में यह तय हो जाने के बाद कि यह तुतलाहट और भाषा सीखने की लडख़ड़ाहट से अलग कोई दूसरी चीज 'हकलाहट ’ है, पिताजी द्वारा कई बार मेरी पिटाई भी की गई। पिताजी दुखी थे, चिंतित और मेरी हकलाहट दूर करने केलिए प्रतिबद्ध। वे मुझसे एक झटकेमें ही पूरा वाक्य बोलने की अपेक्षा रखते थे। इसलिए प्यार से अपने पास बुलाते, गोद में बैठाते, एक हाथ में अमरूद दिखाते हुए रखते और कहते, 'बोलो बेटा, राम ही हम सबका रखवाला है। ’ इसी तरह के कुछ और वाक्य भी बोलने के लिए कहते। मैं अमरूदों की तरफ याचनापूर्ण आशा से देखते हुए और असफलता की स्थिति में पिताजी के आगामी रूप की कल्पना करते हुए अजीब से उत्साह, भय और आशंका की स्थिति में पड़ जाता और 'सबका ’ या 'रखवाला ’ तक आते-आते गड़बड़ हो जाती। पिताजी उत्साह बढ़ाते।
जितना उत्साह वे बढ़ाते, उतना ही परिणाम प्रतिकूल होता जाता। आखिर, अमरूद कहीं एक तरफ लुढ़क रहे होते और मैं दूसरी तरफ। पिटता मैं और क्षोभ भरा विलाप पिताजी करते। कुछ दिनों बाद जब मैं पक्केतौर पर हकला हो गया और उन शब्दों पर भी अटकने लगा, जिन्हें पहले आसानी से, बिना हकलाए बोल लेता था, तब पिताजी ने उम्मीद छोड़ दी। भीषण उम्मीद और उद्देश्यपूर्ण पिटाई का संबंध खत्म हो गया। पिताजी के चेहरे पर मुझे देखते ही असहायता, पीड़ा और कातरता के भाव उभर आते। फिर कुछ दूसरे प्रयास भी किए गए। भभूत, लाल-काली कंठियां, ताबीज, रिश्तेदारों की सलाहों केआधार पर मुलहठी, मिश्री, शहद में भस्मों केसाथ कई तरह के काढ़ों का प्रयोग आदि। इनसे सबसे बड़ी बात यह हुई कि मैं स्कूल जाने से पहले ही पड़ोस में, मोहल्ले, रिश्तेदारों और परिचित परिवारों में हकले के रूप में प्रसिद्ध हो गया। सबने मुझे लाइलाज हकला मान लिया और मेरे प्रति सहानुभूति रखने लगे। कुछ लोग अतिरिक्त हास्य पाने के लिए भी मुझे अपनी-अपनी टोलियों में लेते। बड़ी बहन मुझे इस तरह की टोलियों का शिकार होने से बचाने की प्राय: असफल कोशिश करती। फिर मैं संकोची, काफी हद तक सुशील और दरअसल एक हकले बच्चे की तरह बड़ा होने लगा। हकलाहट मेरी पहचान में सहायक होने लगी। कौन रमेश? अच्छा, रमेश हकला!! स्कूल के दिनों की गाथाएं भी लगभग ऐसी ही थीं। कई बार शिक्षक भी क्लास में मेरा मजाक बनाते या बनता देखते। मुझमें भी एक मूर्खतापूर्ण उत्साह घर कर गया था। बजाय उसके कि अधिकतर चुप्पा बना रहता, जैसा कि आजकल रहने लगा हूं, मैं बोलने का प्रयास करता। सहपाठी उकसाते कि मैं 'सर ’ से कुछ सवाल पूछ लूं। पिछली रात देखे गए नाटक या फिल्म की कहानी सुनते। सालों-साल गुजरने केबाद और कुछ समझदारी आने पर मैंने खुद को अब किसी हद तक संयत करना सीख लिया है। लेकिन यह इतना कठिन है और इतना जानलेवा कि आपको हर बार लगता है कि आप बोल सकते हैं, पूरा शब्द बोल सकते हैं, आपकी इच्छा बोलने की है और आप चुप रह जाते हैं, क्योंकि एक पल में ही हजारों असफलताएं, कटाक्षपूर्ण हंसी, दया बरसाती निगाहों की रीलें पहले से ही दिखने लगती हैं।
अनगिनत शब्दों ने मेरा गला घोंटा है, मेरे कंठ में फंसे पड़े हैं और मेरी नींद में, मेरे सपनों में चुभते हैं। टूटे-फूटे शब्दों के कोने किनारे, उनकी नोकें किस कदर तकलीफ देती हैं। मुझसे ज्यादा कौन समझेगा? शायद गूंगा भी नहीं, क्योंकि उसके गले में शब्द पूरे-के-पूरे जज्ब हंै। टूटे, तुड़े-मुड़े या किरच-किरच शब्द तो मेरे गले में ही फंसे हैं। हालांकि किसी गूंगे की तुलना में कितना भाग्यशाली हूं। यह भी मैं समझता हूं। लोग समझते हैं कि मैंने शब्दों का गला घोंटा है, उन्हें क्षत-विक्षत किया है, जबकि सच यह है कि मैंने शब्दों को अंतरात्मा की गहराइयों से बोलना चाहा है। उत्कट कामना और आकांक्षा से मैं उनके पास गया हूं, कसकर उनका हाथ पकड़ा है, जद्दोजहद की है लेकिन...। छोडि़ए भी, मैं तो हकला ही ठहरा। बचपन और किशोरावस्था के अनेक निर्जन और अकेले कोने मुझे याद हैं। जब मैं शब्दों को पुकारता ही जाता था और आप यकीन नहीं करेंगे कि उस एकांत में, जिसकी गवाह कुछ दीवारें हैं और कुछ दूसरी गैर मनुष्य चीजें, मैंने कई वाक्य पूरे बोले हैं। लंबे वाक्य। खंडहर में बदल चुके पहाड़ी पर बने उस किले केदरबार हॉल की वह दोपहरी भला कैसे भूल सकता हूं, जब मैंने कुछ वाक्य चिल्लाकर लगातार बोले थे, बिना हकलाए। उन वाक्यों की अनुगूंज उस हॉल की विशाल, ऊंची छत से टकराकर लौटी थी। खुशी से मेरा वह उछलना और उसके बाद का रोना कि मैं बोल सकता हूं। हकलाए बिना। वह वीराना, वह खंडहर, वह इतिहास और उसके ऊपर का आकाश गवाह है। लेकिन यह गवाही, यह मेरी एकांत साधना, यह सफलता किसी काम नहीं आ सकती। लोगों के बीच में, जैसे मैं किसी चढ़ाई पर चढ़ता, एक सीढ़ी, संभलकर दूसरी, फिर तीसरी...आठवीं...ग्यारहवीं, किसी न किसी सीढ़ी से अचानक लुढ़क पड़ता। मैं हकले के रूप में बड़ा होता रहा। अनुभवों से सीखता रहा और चुप रह जाने के अवसर पहचानने लगा। धीरे-धीरे लोगों की पहचान भी होने लगी। अब मैं किसी को देखकर अनुमान लगा सकता हूं कि यह आदमी मेरी हकलाहट पर हंसेगा अथवा नहीं। या मन ही मन मेरी अजीबो-गरीब और काफी हद तक अर्जित की गयी इस विकलांगता को लेकर खिल्ली उड़ाएगा या दया भाव रखेगा या फिर घर जाकर या मित्रों के बीच उसका स्वांग करेगा और कुछ देर के लिए खुद हकला हो जाएगा।
पहले दया भाव अच्छा लगता था। मां का छाती से चिमटाकर आंसू टपकाना, जैसे वह दुनिया केतमाम हत्यारों से, चुहलबाजों से मुझे बचा लेना चाहती थी। सातवीं कक्षा का वह सहपाठी याद है, जो बड़ी बहन की तरह मुझे शिकारी टोलियों से बचाने के लिए सक्रिय रहता। वह पेड़, जिसके नीचे बैठकर मैं अपना सबक याद करता और कई बार जोर से बोलकर याद करता। बड़ी बुआ, छोटे मामा और वह लड़की भी इसी गिनती में आएंगे जो मेरी तरफ आसक्ति भरी लेकिन दुखित निगाह डालते थे, जिसमें उपहास कतई नहीं था। ऐसी सुरक्षाओं में ही मैं बड़ा हो पाया। लेकिन धीरे-धीरे दया-भाव बुरा लगने लगा। बल्कि इस दया-भाव से मुक्ति पाने के लिए मुझे पढऩे-लिखने में, कुछ नया काम करने में रुचि और ललक पैदा हुई। यह अनायास नहीं हुआ कि धीरे-धीरे मैं लिखित शब्दों की ओर आकर्षित होने लगा। फिर जल्दी ही कहानियों, कविताओं और उपन्यासों की दुनिया में प्रवेश कर गया। उस दुनिया की सबसे खूबसूरत बात थी कि वहां कोई हकलाहट नहीं थी। सारे शब्द संपूर्णता में थे, अपने समूचे शरीर सहित। लेकिन वे सब वाक्य अपनी बात एक सांस में बोलते थे। सही उतार-चढ़ाव के साथ। जैसे वे खुद ही पात्र हों। उनकी धमक, उनका उच्चारण, उनका ओज और असर जादुई था। मैं इन्हें पढ़ता नहीं था, मन ही मन बोलता था, बिना हकलाहट के। उस आनंददायी दुनिया में मैं हकला नहीं रह गया था, वहां मुझे कोई हकला नहीं समझता था। मैं पिता को बताना चाहता था कि मुझसे वहां कोई नहीं कहता, 'लो, यह एक वाक्य और उसे बोलकर दिखाओ। ’ अपने मनचले रिश्तेदारों, पड़ोसियों और सहपाठियों से कहना चाहता था कि देखो, यहां ऐसी कोई टोली नहीं है, जो मुझे घेर ले। लेकिन मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, किसी को कुछ नही बताया। यह दुनिया जादू की थी और मैं नहीं चाहता था कि इस दुनिया का पता किसी और को चले। इस तिलस्म को मैं टूटते हुए नहीं देखना चाहता था। यह एक सुरक्षित और आत्मीय संसार था। इसका पता किसी और को नहीं दिया जा सकता था। पिता को भी नहीं। यह मेरी गुफा थी लेकिन यहां से अधिक खुलापन, दीवानापन और अपनापन कहीं नहीं था। इससे मिलने वाली ताकत और आश्वस्ति कितनी बड़ी थी, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं छपे या लिखित शब्दों के देखते ही अपनी सारी उदासी, सारा दुख और दंश भूल जाता था। पालतू पशुओं के प्रति मेरा प्रेम भी इसी हकलाहट की देन समझा जा सकता है।
गाय केबछड़े से मेरा पहला प्रेम हुआ, तब मैं दस ग्यारह साल का था। उससे मेरा वार्तालाप रहा। मैं उसके गले से लिपट जाता और वह अपनी गर्दन का पूरा भार मेरे कंधे पर छोड़ देता। फिर एक तोते ने मुझे जीवन दिया। हम एक -दूसरे के बिना खाना भी नहीं खाते थे। इतनी बातें करते कि पता ही नहीं लगता था कि वह पक्षी नहीं रह गया है या मैं पक्षी हो गया हूं। गली के एक कुत्ते ने पांच साल तक मेरा साथ दिया। वे सब मेरे अधूरे शब्दों को पूर्ण बनाते थे। मैं आज भी बिल्लियों, घोड़ों, गधों, कुत्तों, बकरियों और चिडिय़ों की बहुत इज्जत करता हूं। हालांकि अब उन्हें पालना, बंदी बनाना या उनके जीवन को बाधित करना मुझे अच्छा नहीं लगता। एक निजी राहत की बात यह है कि गाना गाते हुए मुझे इस हकलाट से मुक्ति मिलती है। मगर मैं हद से ज्यादा बेसुरा रहा आया हूं। फिर भी अकेले में गाना मेरे लिए स्फूर्तिदायक है। संगीत में मेरी दिलचस्पी है और मैं संगीत के लिए आसानी से रतजगे कर सकता हूं। अब जाकर समझ आया है कि कुछ और बातों के लिए भी मैं अपनी हकलाहट के प्रति आभारी हो सकता हूं। जैसे, यह हकलाहट नहीं होती तो बांस के झुरमुटों, नदी के किनारों, मिट्टी के ढूहों, सूनी इमारतों, वृक्षों की मोटी पुरानी जड़ों, चट्टानों और जंगल केभीतरी दृश्यों से मेरा उतना गहरा परिचय नहीं हुआ होता। हवा की आवाज, जैसी वह अलग-अलग वृक्षों के पत्तों से गुजरते हुए आती है, नदी की आवाज जो दिन में दस बार बदलती है, अनगिन जंतुओं और जानवरों की आवाजों को जानने समझने का सिलसिला और प्रकृति केपास जाते ही उसमें धंस जाने का यह माद्दा शायद पैदा नहीं हुआ होता। चीटिंयों और सांप की बांबियों के फर्क को समझना अब कितना आसान है। सितारों से, उनकी दुलकी चाल से, चंद्रमा से और रात के अलौकिक अंधेरे से या अनजान निर्जन कोनों से मेरी सघन मुलाकातें नहीं हुई होतीं। लेकिन किसी हकले से ज्यादा यह बात भला किसे याद रहेगी कि अंतत: वह एक मनुष्य है और उसे मनुष्यों के साथ ही रहना है। अपने जीवन के तमाम काम मुझे मनुष्यों के साथ ही रहकर करने हैं। इसलिए धीरे-धीरे मुझमें पुकारते चले जाने का जो धीरज पैदा होता गया है, हकलाहट का उसमें खासा योगदान है। यह समझने की ताकत भी यहीं कहीं से आयी कि मेरे पास कितनी सारी दूसरी जादुई शक्तियां हैं और मैं कितने सारे काम मजे में कर सकता हूं। और एक दिन मुझे यह भी लगा कि मै हकला जरूर हूं, लेकिन सचमुच हकलाता नहीं हूं। जब उस दिन मैंने देखा कि वह आदमी, जिसे मैं बलशाली समझता था, जो साफ-शफ्फाफ शब्द बोलता था, जिसके शब्द तराशे हुए हीरों की तरह बिखरते थे और ललचाते थे, जिसे सुनना एक अनुभव था और जो अपनी वाणी से ईष्र्या पैदा करता था, वह अचानक ही एक-दूसरे आदमी को देखकर हकलाने लगा। मुझे उस रोज रात भर नींद नहीं आयी। फिर आधी रात में मैं चिल्ला उठा, 'ओह! तो मैं हकला नहीं हूं। सचमुच का हकला नहीं हूं। ’ यह रहस्य से पर्दा उठने जैसा था। सारी दुनिया मेरे लिए उस दिन से रोज बदल रही है। ध्यान से देखने सुनने पर मुझे अब अनेक लोग ऐसे मिलते हैं, जो सरपट बोलते दिखते हैं, लेकिन उस बीच वे अनेक बार हकला रहे होते हैं। वे सपाट मैदान में चलते हुए गिर रहे हैं। उन्हें सुनने वाला शख्स भी समझ रहा होता है कि हां, ये जनाब हकला रहे हैं। जबकि शब्द इस उम्मीद में उनके पास आते थे, वाक्य उनकेकरीब आते थे कि उन्हें वहां पूर्णता मिलेगी, वे संवाद की दुनिया में अपने हिस्से का काम करेंगे, लेकिन अचानक ही सब देखते कि जिन पर शब्दों ने सबसे ज्यादा भरोसा किया होता, वे ही लोग हकलाने लगते। जब वे इतनी साधारण बातें कहना चाहते, 'आप चिंता न करें, मैं आपकेसाथ खड़ा हूं। ’, 'मैं आपकी भलाई के लिए काम कर रहा हूं ’, 'प्रधानमंत्री जी खराब कविता लिखते हैं। ’, 'यह सब्जी महंगी है ’ या 'यह कि आज की शाम कितनी सुहानी है ’, तब भी वे हकलाने लगते। उन्हें देखते हुए अचानक यह जान लेना कितना सुखद था कि दरअसल, मैं हकला नहीं हूं। लेकिन यह देखना कितना मारक था कि दुनिया में इतने ज्यादा हकले हैं।
संख्या बढ़ी चली जा रही है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि तुम नहीं जानते यह किस कदर खूबसूरत बात है कि तुम शब्दों को आरोह-अवरोह के साथ उनकी संपूर्णता में संप्रेषित कर सकते हो, उन्हें उस तरह बोल सकते हो जिस तरह बोले जाने के लिए वे बने हैं और रोज बन रहे हैं, उन्हें तुम एक वाक्य के सुंदर विन्यास में पेश कर सकते हो, उनकी पूरी ताकत के साथ, उनके पूरे रोमांच केसाथ! शब्द को जब तुम किसी घन की तरह पटकना चाहो, तो पटक सकते हो। यह नहीं कि मेरी तरह सबसे ताकतवर शब्द पर आकर मुंह बाये रह जाओ। या यह कि तुम जोर देकर एक वाक्य बोल रहे हो और ठीक बीच में हाथ उठा हुआ ही रह गया और शब्द हवा में झूल गया। तुम एक झटके में फूल को फूल कह सकते हो और गड्ढे को गड्ढा। तुम हकले नहीं हो, तो यह जानो कि यह कितनी बड़ी बात है, कितनी बड़ी क्षमता। मुझसे पूछो। यकीन न हो, तो मेरे गले को भीतर झांको। मेरी नाभि में, मेरे कुएं में देखो। देखो घिग्घी बांधकर निढाल हो गए शब्दों की देह। सुनो उनका रुदन। उनकी बेचैनी देखो और उनकी अकाल, घिसटती हुई लंबी मृत्यु। उनकी खंडित प्रतिमाएं। उन्हें देखो कि तुम समझ सको कि तुम्हारी भूमिका कितनी बड़ी है, कितनी जबरदस्त। मैं तुम्हारे सामने हूं। मेरा रेशा-रेशा उधेड़कर देखो और जानो कि आखिर हकला होना क्या होता है। यह कितने दुखों से मिलकर बनता है। इससे कितनी बड़ी असहायता का निर्माण होता है, कितनी खिड़कियां, कितने दरवाजे बंद होते हैं। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम हकले नहीं हो। तुमने हकले का दुख नहीं देखा है और जीवन भी नहीं। तुम वास्तव में हकले होते, तो तुम्हें तमाम प्रकृति, पशु-पक्षियों और किताबों से भी प्रेम होता। और इनसानों से भी। लेकिन मैं हकलाता हुआ ही इन वाक्यों को कह पाया हूं, किसी भयवश नहीं, बल्कि माफ करें, जैसा आप जानते ही हैं कि यह मेरी जन्मजात मजबूरी है। फिर भी व्यक्तिगत बातचीत में, बहसों में, चाय की गुमटियों के किनारे की गपशप में, मीटिंग्स में और आत्मालाप में यही सब कुछ कहता रहा हूं। तरह-तरह से। घुमा-फिराकर। सीधे-सीधे भी। लेकिन किसी उपदेश की तरह नहीं। न ही किसी मंत्र की तरह। मैं अपने निजी दुख की तरह इसे तुम्हारे सामने रखना चाहता हूं। जांध में पके हुए फोड़े की तरह। कि आप ध्यान से एक बार सुन तो लें।
फिर यह सब कह सकने के लिए मुझे लिखित शब्द याद आए। उनकी गरिमा, उनकी बेधक आवाज, गड़हगड़ाहट और उनकी शक्ति याद आयी। इसलिए लगा कि लिखकर ही आपसे कुछ कहूं। अपनी पूरी गाथा, जल्दी-जल्दी एक सांस में इसलिए लिख सुनायी कि आप एक हकले का दर्द, निरुपायता और व्याकुलता कुछ हद तक महसूस कर सकें और जानें कि हकला न होना कितनी बड़ी नियामत है। खासतौर पर तब, जबकि आपकी यह हकलाहट मेरे मन में आपके लिए सहानुभूति भी नहीं बना पा रही है। और आपकी इस पकी उम्र को देखकर मैं यह मानने को भी तैयार नहीं हूं कि आप मेरा स्वांग कर रहे हैं और महज मनोरंजन करना चाहते हैं। यदि आप हकले नहीं हैं, तो हकला बनने की जरूरत क्या आन पड़ी है! मैं किस मुंह से कहूं कि मुझे अब मेरी हकलाहट उतनी बेचैन नहीं करती जितनी आपकी। आखिर में, मैं चाहता हूं कि आपका धन्यवाद अदा करूं। क्योंकि एक हकला, उनका शुक्रिया ही सबसे ज्यादा अदा कर सकता है, जो उसे धैर्यपूर्वक सुनें, उसके खुले हुए मुंह, पेशानी केबल और शब्द को खींच निकाल लाने के श्रम पर अफसोसनाक निगाह न डालें। और जब वह किसी एक शब्द पर, रह सकें और उसका वाक्य पूरा होने तक उसकी तरफ उस तरह देख सकें, जैसे बचपन में मेरी मां, मुझ हकले की तरफ देखती है।
कुमार अंबुज
मैं अपनी सुदूर स्मृति के पहले दिन से ही हकला हूं। 'स्पीच थेरेपी ’ का नाम न तो मेरे घर-गांव में किसी ने सुना था, न कस्बे में। बचपन में यह तय हो जाने के बाद कि यह तुतलाहट और भाषा सीखने की लडख़ड़ाहट से अलग कोई दूसरी चीज 'हकलाहट ’ है, पिताजी द्वारा कई बार मेरी पिटाई भी की गई। पिताजी दुखी थे, चिंतित और मेरी हकलाहट दूर करने केलिए प्रतिबद्ध। वे मुझसे एक झटकेमें ही पूरा वाक्य बोलने की अपेक्षा रखते थे। इसलिए प्यार से अपने पास बुलाते, गोद में बैठाते, एक हाथ में अमरूद दिखाते हुए रखते और कहते, 'बोलो बेटा, राम ही हम सबका रखवाला है। ’ इसी तरह के कुछ और वाक्य भी बोलने के लिए कहते। मैं अमरूदों की तरफ याचनापूर्ण आशा से देखते हुए और असफलता की स्थिति में पिताजी के आगामी रूप की कल्पना करते हुए अजीब से उत्साह, भय और आशंका की स्थिति में पड़ जाता और 'सबका ’ या 'रखवाला ’ तक आते-आते गड़बड़ हो जाती। पिताजी उत्साह बढ़ाते।
जितना उत्साह वे बढ़ाते, उतना ही परिणाम प्रतिकूल होता जाता। आखिर, अमरूद कहीं एक तरफ लुढ़क रहे होते और मैं दूसरी तरफ। पिटता मैं और क्षोभ भरा विलाप पिताजी करते। कुछ दिनों बाद जब मैं पक्केतौर पर हकला हो गया और उन शब्दों पर भी अटकने लगा, जिन्हें पहले आसानी से, बिना हकलाए बोल लेता था, तब पिताजी ने उम्मीद छोड़ दी। भीषण उम्मीद और उद्देश्यपूर्ण पिटाई का संबंध खत्म हो गया। पिताजी के चेहरे पर मुझे देखते ही असहायता, पीड़ा और कातरता के भाव उभर आते। फिर कुछ दूसरे प्रयास भी किए गए। भभूत, लाल-काली कंठियां, ताबीज, रिश्तेदारों की सलाहों केआधार पर मुलहठी, मिश्री, शहद में भस्मों केसाथ कई तरह के काढ़ों का प्रयोग आदि। इनसे सबसे बड़ी बात यह हुई कि मैं स्कूल जाने से पहले ही पड़ोस में, मोहल्ले, रिश्तेदारों और परिचित परिवारों में हकले के रूप में प्रसिद्ध हो गया। सबने मुझे लाइलाज हकला मान लिया और मेरे प्रति सहानुभूति रखने लगे। कुछ लोग अतिरिक्त हास्य पाने के लिए भी मुझे अपनी-अपनी टोलियों में लेते। बड़ी बहन मुझे इस तरह की टोलियों का शिकार होने से बचाने की प्राय: असफल कोशिश करती। फिर मैं संकोची, काफी हद तक सुशील और दरअसल एक हकले बच्चे की तरह बड़ा होने लगा। हकलाहट मेरी पहचान में सहायक होने लगी। कौन रमेश? अच्छा, रमेश हकला!! स्कूल के दिनों की गाथाएं भी लगभग ऐसी ही थीं। कई बार शिक्षक भी क्लास में मेरा मजाक बनाते या बनता देखते। मुझमें भी एक मूर्खतापूर्ण उत्साह घर कर गया था। बजाय उसके कि अधिकतर चुप्पा बना रहता, जैसा कि आजकल रहने लगा हूं, मैं बोलने का प्रयास करता। सहपाठी उकसाते कि मैं 'सर ’ से कुछ सवाल पूछ लूं। पिछली रात देखे गए नाटक या फिल्म की कहानी सुनते। सालों-साल गुजरने केबाद और कुछ समझदारी आने पर मैंने खुद को अब किसी हद तक संयत करना सीख लिया है। लेकिन यह इतना कठिन है और इतना जानलेवा कि आपको हर बार लगता है कि आप बोल सकते हैं, पूरा शब्द बोल सकते हैं, आपकी इच्छा बोलने की है और आप चुप रह जाते हैं, क्योंकि एक पल में ही हजारों असफलताएं, कटाक्षपूर्ण हंसी, दया बरसाती निगाहों की रीलें पहले से ही दिखने लगती हैं।
अनगिनत शब्दों ने मेरा गला घोंटा है, मेरे कंठ में फंसे पड़े हैं और मेरी नींद में, मेरे सपनों में चुभते हैं। टूटे-फूटे शब्दों के कोने किनारे, उनकी नोकें किस कदर तकलीफ देती हैं। मुझसे ज्यादा कौन समझेगा? शायद गूंगा भी नहीं, क्योंकि उसके गले में शब्द पूरे-के-पूरे जज्ब हंै। टूटे, तुड़े-मुड़े या किरच-किरच शब्द तो मेरे गले में ही फंसे हैं। हालांकि किसी गूंगे की तुलना में कितना भाग्यशाली हूं। यह भी मैं समझता हूं। लोग समझते हैं कि मैंने शब्दों का गला घोंटा है, उन्हें क्षत-विक्षत किया है, जबकि सच यह है कि मैंने शब्दों को अंतरात्मा की गहराइयों से बोलना चाहा है। उत्कट कामना और आकांक्षा से मैं उनके पास गया हूं, कसकर उनका हाथ पकड़ा है, जद्दोजहद की है लेकिन...। छोडि़ए भी, मैं तो हकला ही ठहरा। बचपन और किशोरावस्था के अनेक निर्जन और अकेले कोने मुझे याद हैं। जब मैं शब्दों को पुकारता ही जाता था और आप यकीन नहीं करेंगे कि उस एकांत में, जिसकी गवाह कुछ दीवारें हैं और कुछ दूसरी गैर मनुष्य चीजें, मैंने कई वाक्य पूरे बोले हैं। लंबे वाक्य। खंडहर में बदल चुके पहाड़ी पर बने उस किले केदरबार हॉल की वह दोपहरी भला कैसे भूल सकता हूं, जब मैंने कुछ वाक्य चिल्लाकर लगातार बोले थे, बिना हकलाए। उन वाक्यों की अनुगूंज उस हॉल की विशाल, ऊंची छत से टकराकर लौटी थी। खुशी से मेरा वह उछलना और उसके बाद का रोना कि मैं बोल सकता हूं। हकलाए बिना। वह वीराना, वह खंडहर, वह इतिहास और उसके ऊपर का आकाश गवाह है। लेकिन यह गवाही, यह मेरी एकांत साधना, यह सफलता किसी काम नहीं आ सकती। लोगों के बीच में, जैसे मैं किसी चढ़ाई पर चढ़ता, एक सीढ़ी, संभलकर दूसरी, फिर तीसरी...आठवीं...ग्यारहवीं, किसी न किसी सीढ़ी से अचानक लुढ़क पड़ता। मैं हकले के रूप में बड़ा होता रहा। अनुभवों से सीखता रहा और चुप रह जाने के अवसर पहचानने लगा। धीरे-धीरे लोगों की पहचान भी होने लगी। अब मैं किसी को देखकर अनुमान लगा सकता हूं कि यह आदमी मेरी हकलाहट पर हंसेगा अथवा नहीं। या मन ही मन मेरी अजीबो-गरीब और काफी हद तक अर्जित की गयी इस विकलांगता को लेकर खिल्ली उड़ाएगा या दया भाव रखेगा या फिर घर जाकर या मित्रों के बीच उसका स्वांग करेगा और कुछ देर के लिए खुद हकला हो जाएगा।
पहले दया भाव अच्छा लगता था। मां का छाती से चिमटाकर आंसू टपकाना, जैसे वह दुनिया केतमाम हत्यारों से, चुहलबाजों से मुझे बचा लेना चाहती थी। सातवीं कक्षा का वह सहपाठी याद है, जो बड़ी बहन की तरह मुझे शिकारी टोलियों से बचाने के लिए सक्रिय रहता। वह पेड़, जिसके नीचे बैठकर मैं अपना सबक याद करता और कई बार जोर से बोलकर याद करता। बड़ी बुआ, छोटे मामा और वह लड़की भी इसी गिनती में आएंगे जो मेरी तरफ आसक्ति भरी लेकिन दुखित निगाह डालते थे, जिसमें उपहास कतई नहीं था। ऐसी सुरक्षाओं में ही मैं बड़ा हो पाया। लेकिन धीरे-धीरे दया-भाव बुरा लगने लगा। बल्कि इस दया-भाव से मुक्ति पाने के लिए मुझे पढऩे-लिखने में, कुछ नया काम करने में रुचि और ललक पैदा हुई। यह अनायास नहीं हुआ कि धीरे-धीरे मैं लिखित शब्दों की ओर आकर्षित होने लगा। फिर जल्दी ही कहानियों, कविताओं और उपन्यासों की दुनिया में प्रवेश कर गया। उस दुनिया की सबसे खूबसूरत बात थी कि वहां कोई हकलाहट नहीं थी। सारे शब्द संपूर्णता में थे, अपने समूचे शरीर सहित। लेकिन वे सब वाक्य अपनी बात एक सांस में बोलते थे। सही उतार-चढ़ाव के साथ। जैसे वे खुद ही पात्र हों। उनकी धमक, उनका उच्चारण, उनका ओज और असर जादुई था। मैं इन्हें पढ़ता नहीं था, मन ही मन बोलता था, बिना हकलाहट के। उस आनंददायी दुनिया में मैं हकला नहीं रह गया था, वहां मुझे कोई हकला नहीं समझता था। मैं पिता को बताना चाहता था कि मुझसे वहां कोई नहीं कहता, 'लो, यह एक वाक्य और उसे बोलकर दिखाओ। ’ अपने मनचले रिश्तेदारों, पड़ोसियों और सहपाठियों से कहना चाहता था कि देखो, यहां ऐसी कोई टोली नहीं है, जो मुझे घेर ले। लेकिन मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, किसी को कुछ नही बताया। यह दुनिया जादू की थी और मैं नहीं चाहता था कि इस दुनिया का पता किसी और को चले। इस तिलस्म को मैं टूटते हुए नहीं देखना चाहता था। यह एक सुरक्षित और आत्मीय संसार था। इसका पता किसी और को नहीं दिया जा सकता था। पिता को भी नहीं। यह मेरी गुफा थी लेकिन यहां से अधिक खुलापन, दीवानापन और अपनापन कहीं नहीं था। इससे मिलने वाली ताकत और आश्वस्ति कितनी बड़ी थी, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं छपे या लिखित शब्दों के देखते ही अपनी सारी उदासी, सारा दुख और दंश भूल जाता था। पालतू पशुओं के प्रति मेरा प्रेम भी इसी हकलाहट की देन समझा जा सकता है।
गाय केबछड़े से मेरा पहला प्रेम हुआ, तब मैं दस ग्यारह साल का था। उससे मेरा वार्तालाप रहा। मैं उसके गले से लिपट जाता और वह अपनी गर्दन का पूरा भार मेरे कंधे पर छोड़ देता। फिर एक तोते ने मुझे जीवन दिया। हम एक -दूसरे के बिना खाना भी नहीं खाते थे। इतनी बातें करते कि पता ही नहीं लगता था कि वह पक्षी नहीं रह गया है या मैं पक्षी हो गया हूं। गली के एक कुत्ते ने पांच साल तक मेरा साथ दिया। वे सब मेरे अधूरे शब्दों को पूर्ण बनाते थे। मैं आज भी बिल्लियों, घोड़ों, गधों, कुत्तों, बकरियों और चिडिय़ों की बहुत इज्जत करता हूं। हालांकि अब उन्हें पालना, बंदी बनाना या उनके जीवन को बाधित करना मुझे अच्छा नहीं लगता। एक निजी राहत की बात यह है कि गाना गाते हुए मुझे इस हकलाट से मुक्ति मिलती है। मगर मैं हद से ज्यादा बेसुरा रहा आया हूं। फिर भी अकेले में गाना मेरे लिए स्फूर्तिदायक है। संगीत में मेरी दिलचस्पी है और मैं संगीत के लिए आसानी से रतजगे कर सकता हूं। अब जाकर समझ आया है कि कुछ और बातों के लिए भी मैं अपनी हकलाहट के प्रति आभारी हो सकता हूं। जैसे, यह हकलाहट नहीं होती तो बांस के झुरमुटों, नदी के किनारों, मिट्टी के ढूहों, सूनी इमारतों, वृक्षों की मोटी पुरानी जड़ों, चट्टानों और जंगल केभीतरी दृश्यों से मेरा उतना गहरा परिचय नहीं हुआ होता। हवा की आवाज, जैसी वह अलग-अलग वृक्षों के पत्तों से गुजरते हुए आती है, नदी की आवाज जो दिन में दस बार बदलती है, अनगिन जंतुओं और जानवरों की आवाजों को जानने समझने का सिलसिला और प्रकृति केपास जाते ही उसमें धंस जाने का यह माद्दा शायद पैदा नहीं हुआ होता। चीटिंयों और सांप की बांबियों के फर्क को समझना अब कितना आसान है। सितारों से, उनकी दुलकी चाल से, चंद्रमा से और रात के अलौकिक अंधेरे से या अनजान निर्जन कोनों से मेरी सघन मुलाकातें नहीं हुई होतीं। लेकिन किसी हकले से ज्यादा यह बात भला किसे याद रहेगी कि अंतत: वह एक मनुष्य है और उसे मनुष्यों के साथ ही रहना है। अपने जीवन के तमाम काम मुझे मनुष्यों के साथ ही रहकर करने हैं। इसलिए धीरे-धीरे मुझमें पुकारते चले जाने का जो धीरज पैदा होता गया है, हकलाहट का उसमें खासा योगदान है। यह समझने की ताकत भी यहीं कहीं से आयी कि मेरे पास कितनी सारी दूसरी जादुई शक्तियां हैं और मैं कितने सारे काम मजे में कर सकता हूं। और एक दिन मुझे यह भी लगा कि मै हकला जरूर हूं, लेकिन सचमुच हकलाता नहीं हूं। जब उस दिन मैंने देखा कि वह आदमी, जिसे मैं बलशाली समझता था, जो साफ-शफ्फाफ शब्द बोलता था, जिसके शब्द तराशे हुए हीरों की तरह बिखरते थे और ललचाते थे, जिसे सुनना एक अनुभव था और जो अपनी वाणी से ईष्र्या पैदा करता था, वह अचानक ही एक-दूसरे आदमी को देखकर हकलाने लगा। मुझे उस रोज रात भर नींद नहीं आयी। फिर आधी रात में मैं चिल्ला उठा, 'ओह! तो मैं हकला नहीं हूं। सचमुच का हकला नहीं हूं। ’ यह रहस्य से पर्दा उठने जैसा था। सारी दुनिया मेरे लिए उस दिन से रोज बदल रही है। ध्यान से देखने सुनने पर मुझे अब अनेक लोग ऐसे मिलते हैं, जो सरपट बोलते दिखते हैं, लेकिन उस बीच वे अनेक बार हकला रहे होते हैं। वे सपाट मैदान में चलते हुए गिर रहे हैं। उन्हें सुनने वाला शख्स भी समझ रहा होता है कि हां, ये जनाब हकला रहे हैं। जबकि शब्द इस उम्मीद में उनके पास आते थे, वाक्य उनकेकरीब आते थे कि उन्हें वहां पूर्णता मिलेगी, वे संवाद की दुनिया में अपने हिस्से का काम करेंगे, लेकिन अचानक ही सब देखते कि जिन पर शब्दों ने सबसे ज्यादा भरोसा किया होता, वे ही लोग हकलाने लगते। जब वे इतनी साधारण बातें कहना चाहते, 'आप चिंता न करें, मैं आपकेसाथ खड़ा हूं। ’, 'मैं आपकी भलाई के लिए काम कर रहा हूं ’, 'प्रधानमंत्री जी खराब कविता लिखते हैं। ’, 'यह सब्जी महंगी है ’ या 'यह कि आज की शाम कितनी सुहानी है ’, तब भी वे हकलाने लगते। उन्हें देखते हुए अचानक यह जान लेना कितना सुखद था कि दरअसल, मैं हकला नहीं हूं। लेकिन यह देखना कितना मारक था कि दुनिया में इतने ज्यादा हकले हैं।
संख्या बढ़ी चली जा रही है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि तुम नहीं जानते यह किस कदर खूबसूरत बात है कि तुम शब्दों को आरोह-अवरोह के साथ उनकी संपूर्णता में संप्रेषित कर सकते हो, उन्हें उस तरह बोल सकते हो जिस तरह बोले जाने के लिए वे बने हैं और रोज बन रहे हैं, उन्हें तुम एक वाक्य के सुंदर विन्यास में पेश कर सकते हो, उनकी पूरी ताकत के साथ, उनके पूरे रोमांच केसाथ! शब्द को जब तुम किसी घन की तरह पटकना चाहो, तो पटक सकते हो। यह नहीं कि मेरी तरह सबसे ताकतवर शब्द पर आकर मुंह बाये रह जाओ। या यह कि तुम जोर देकर एक वाक्य बोल रहे हो और ठीक बीच में हाथ उठा हुआ ही रह गया और शब्द हवा में झूल गया। तुम एक झटके में फूल को फूल कह सकते हो और गड्ढे को गड्ढा। तुम हकले नहीं हो, तो यह जानो कि यह कितनी बड़ी बात है, कितनी बड़ी क्षमता। मुझसे पूछो। यकीन न हो, तो मेरे गले को भीतर झांको। मेरी नाभि में, मेरे कुएं में देखो। देखो घिग्घी बांधकर निढाल हो गए शब्दों की देह। सुनो उनका रुदन। उनकी बेचैनी देखो और उनकी अकाल, घिसटती हुई लंबी मृत्यु। उनकी खंडित प्रतिमाएं। उन्हें देखो कि तुम समझ सको कि तुम्हारी भूमिका कितनी बड़ी है, कितनी जबरदस्त। मैं तुम्हारे सामने हूं। मेरा रेशा-रेशा उधेड़कर देखो और जानो कि आखिर हकला होना क्या होता है। यह कितने दुखों से मिलकर बनता है। इससे कितनी बड़ी असहायता का निर्माण होता है, कितनी खिड़कियां, कितने दरवाजे बंद होते हैं। मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि तुम हकले नहीं हो। तुमने हकले का दुख नहीं देखा है और जीवन भी नहीं। तुम वास्तव में हकले होते, तो तुम्हें तमाम प्रकृति, पशु-पक्षियों और किताबों से भी प्रेम होता। और इनसानों से भी। लेकिन मैं हकलाता हुआ ही इन वाक्यों को कह पाया हूं, किसी भयवश नहीं, बल्कि माफ करें, जैसा आप जानते ही हैं कि यह मेरी जन्मजात मजबूरी है। फिर भी व्यक्तिगत बातचीत में, बहसों में, चाय की गुमटियों के किनारे की गपशप में, मीटिंग्स में और आत्मालाप में यही सब कुछ कहता रहा हूं। तरह-तरह से। घुमा-फिराकर। सीधे-सीधे भी। लेकिन किसी उपदेश की तरह नहीं। न ही किसी मंत्र की तरह। मैं अपने निजी दुख की तरह इसे तुम्हारे सामने रखना चाहता हूं। जांध में पके हुए फोड़े की तरह। कि आप ध्यान से एक बार सुन तो लें।
फिर यह सब कह सकने के लिए मुझे लिखित शब्द याद आए। उनकी गरिमा, उनकी बेधक आवाज, गड़हगड़ाहट और उनकी शक्ति याद आयी। इसलिए लगा कि लिखकर ही आपसे कुछ कहूं। अपनी पूरी गाथा, जल्दी-जल्दी एक सांस में इसलिए लिख सुनायी कि आप एक हकले का दर्द, निरुपायता और व्याकुलता कुछ हद तक महसूस कर सकें और जानें कि हकला न होना कितनी बड़ी नियामत है। खासतौर पर तब, जबकि आपकी यह हकलाहट मेरे मन में आपके लिए सहानुभूति भी नहीं बना पा रही है। और आपकी इस पकी उम्र को देखकर मैं यह मानने को भी तैयार नहीं हूं कि आप मेरा स्वांग कर रहे हैं और महज मनोरंजन करना चाहते हैं। यदि आप हकले नहीं हैं, तो हकला बनने की जरूरत क्या आन पड़ी है! मैं किस मुंह से कहूं कि मुझे अब मेरी हकलाहट उतनी बेचैन नहीं करती जितनी आपकी। आखिर में, मैं चाहता हूं कि आपका धन्यवाद अदा करूं। क्योंकि एक हकला, उनका शुक्रिया ही सबसे ज्यादा अदा कर सकता है, जो उसे धैर्यपूर्वक सुनें, उसके खुले हुए मुंह, पेशानी केबल और शब्द को खींच निकाल लाने के श्रम पर अफसोसनाक निगाह न डालें। और जब वह किसी एक शब्द पर, रह सकें और उसका वाक्य पूरा होने तक उसकी तरफ उस तरह देख सकें, जैसे बचपन में मेरी मां, मुझ हकले की तरफ देखती है।
कुमार अंबुज
Saturday, February 20, 2010
हकहालट व कम सुनाई देना लाइलाज नहीं
बच्चों एवं बड़ों में तुतलाहट हकलाहट और कम सुनाई देने की समस्या का निदान आज के दौर में काफी आसान हो गया है। अब कम सुनाई देने वाले व्यक्तियों के लिए अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं। बच्चे में तुतलापन अगर चार साल तक रहता है तो परेशानी की बात नहीं है क्योंकि इस दौरान स्वरतंत्र के विकास की उम्र होती है लेकिन चार साल बाद भी तुतलाहट रहने पर बच्चे को स्पीच थेरेपिस्ट को दिखाना चाहिए। तुतलाहट के इलाज के तौर पर स्पीच थेरेपी दी जाती है जिससे यह ठीक हो जाता है। स्वर विकार की समस्या बालपन से ही तब शुरू होती है जब घर-परिवार के लोग बच्चे की हकलाहट या तुतलाहट को बाल प्रवृति या बाल स्वभाव मान कर उसकी तरफ ध्यान नहीं देते। हकलाने वाले बच्चे या वयस्क आम लोगों की तरह धारा प्रवाह और स्पष्ट बोलकर बीच-बीच में रुककर, शब्दों को तोड़-मरोड़कर या मुख्य शब्द को दुहरा कर बोलते हैं। बोलते समय उनमें कभी-कभी हिचक भी आ जाती है। या वे झिझक का भी अनुभव करते हैं। ऐसे बच्चे कई बार बोलना चाहते हैं लेकिन बोल नहीं पाते। हकलाहट शारीरिक विकार नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक विकार है। हकलाने वाले व्यक्ति के शरीर के अंग या स्वरतंत्र में कोई खराबी नहीं होती। कई बच्चे किसी व्यक्ति के संपर्क में आने पर हकलाने लगते हैं। जब किसी बच्चे का कोई दोस्त या रिश्तेदार हकलाता है तो जाने-अनजाने बच्चा भी उसकी नकल करता है और धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन जाती है। हकलाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व सामान्य व्यक्ति से भिन्न होता है। आमतौर पर हकलाने वाले बच्चे या बड़े दिमाग से कमजोर नहीं होते बल्कि उनकी बुद्धि सामान्य से अधिक होती है। हकलाने वाले बच्चे भावुक और अंतर्मुखी किस्म के होते हैं। बच्चे के मन में यह भावना आ जाए कि किसी व्यक्ति के सामने रुक-रुक कर बोलूंगा, तो मेरी हंसी उड़ाएंगे, तब उनमें हकलाने की प्रवृति और बढ़ जाती है। ऐसे लोग टेलीफोन पर बात करते या इंटरव्यू का सामना करने में घबराते हैं। उन्हें लगता है कि जब लोग मुझसे सवाल करेंगे तो मैं जवाब नहीं दे सकूंगा। हकलाने वाले बच्चे या वयस्क हर समय नहीं हकलाते बल्कि उनका हकलाना परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जैसे कोई बच्चा किसी खास वाक्य को सामान्य परिस्थिति में बोलने पर नहीं हकलाता लेकिन उसी वाक्य को विपरीत परिस्थिति में बोलने पर हकलाने लगता है। हकलाने की कोई उम्र नहीं होती। यह किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है। इसका 95 प्रतिशत तक इलाज संभव है। इलाज के तौर पर मरीज की काउंसलिंग (परामर्श) करनी पड़ती है और स्पीचथेरेपी दी जाती है। स्पीच काउंसलिंग के तहत रोगी को यह बताया जाता है कि उसके स्वरतंत्र में कोई खराबी नहीं है, केवल मन में डर बैठा है। व्यक्ति को समझा-बुझाकर उसमें आत्मविश्वास पैदा किया जाता है। स्पीचथैरेपी द्वारा रिलेक्सेशन (तनाव रहित होने) के उपाय बताए जाते हैं। जब किसी बच्चे का उच्चारण साफ नहीं होता तो उसे तोतलापन कहते हैं। बच्चा जब कापी को तापी, रोटी को लोटी बोलता है तब माना जाता है कि वह तुतलाहट से ग्रस्त है। कुछ बच्चे या व्यक्ति एक अक्षर की जगह दूसरा अक्षर बोलते हैं जैसे काफी को तापी, खाओ को थाओ, गाय को दाय, रोटी को लोती बोलते हैं। बच्चों और बड़ों में सबसे सामान्य किस्म की तुतलाहट यही है। कुछ व्यक्ति बोलते समय बीच में किसी एक अक्षर को खा जाते हैं जैसे वे काफी को आपी, रोटी को ओटी बोलते हैं। इसमें शब्द का पहला घटक बिल्कुल गायब हो जाता है जबकि कुछ बच्चे कुछ अक्षरों का उच्चारण साफ नहीं करते हैं। तुतलाने का पहला कारण शारीरिक विकार (आर्गेनिक डिफेक्ट) है। इसमें व्यक्ति के स्वरतंत्र में किसी न किसी तरह की खराबी होती है। जब किसी व्यक्ति की जीभ टन्काई तरह की होती है अर्थात जुड़ी हुई होती है और ऊपर तालू को छूती है तो वह व्यक्ति रोटी को रोती बोलता है। इसमें व्यक्ति के स्वरतंत्र जैसे जीभ, तालू, दांत, जबड़े, होंठ आदि में खराबी होती है। कभी भी तालु छोटा हो सकता है या तालु में छेद हो सकता है। इसके अलावा होंठ कटे फटे रहने से भी यह दोष हो सकता है। दूसरा कारण फंक्शनल विकार है। इसमें स्वरतंत्र बिल्कुल ठीक होता है, फिर भी बच्चा साफ नहीं बोलता है। (स्वास्थ्य दर्पण) -एच.के. पुरी
Sunday, February 14, 2010
बच्चों के तुतलाहट का इलाज
ND ND
1 सबसे पहले बच्चे को नाक-कान-गले के विशेषज्ञ के पास ले जाएँ और शारीरिक कारणों का पता लगाएँ।
2 आई.क्यू. लेवल का कम या अत्यधिक कम होना : आई.क्यू. टेस्ट द्वारा पता करने के लिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाएँ।
3 अगर शारीरिक त्रुटियाँ हों तो उन्हें दूर करने का प्रयास करें।
4 घर और स्कूल में ऐसे बच्चों को बोलने के लिए प्रेरित करें।
5 बच्चे का मजाक न उड़ाएँ बल्कि प्रेम से पेश आएँ।
6 अगर बच्चे की याददाश्त कमजोर हो तो उसे विकसित करने के लिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करें।
7 स्पीच थैरेपिस्ट, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट की सलाह से बच्चे के स्पीच का विकास करने का प्रयास करें।
रितिक रोशन पहले हकलाते थे। हकलाना शर्म की बात नहीं
मुंबई। आज पर्दे पर धड़ल्ले से डायलॉग बोलने वाले बॉलीवुड के सुपरस्टार ऋतिक रोशन बचपन में हकलाते थे। वो एक लाइन साफ नहीं बोल पाते थे। उनकी बातें लोगों को समझ में नहीं आती थीं।
फराह खान के टीवी शो तेरे-मेरे बीच में में ऋतिक ने खुद ये खुलासा किया कि वे आज भी एक घंटे रोज स्पीच थेरेपी लेते हैं, जिससे कि वो दोबारा हकलाना ना शुरू कर दें। ऋतिक ने बताया कि डॉक्टर ने उनसे कहा था कि तुम कभी एक्टर नहीं बन पाओगे। तुम 21 साल के हो, कुछ और क्यों नहीं करते।
ऋतिक जब छह साल के थे तभी उन्हें एहसास हो गया कि वो हकलाते हैं। उनकी जिंदगी में कई बार शर्मिंदगी भरे पल आए, जब वो किसी को अपनी बात नहीं समझा पाते थे। यहां तक कि वो ये भी नहीं बोल पाते थे कि वो एक्टर बनना चाहते हैं।
ऋतिक को कभी डॉक्टरों ने ये भी साफ कह दिया था कि वो पूरी जिंदगी में कभी डांस नहीं कर सकते क्योंकि बचपन में ऋतिक की पीठ में डिस्क प्रॉब्लम थी। उनका ज्यादातर वक्त बिस्तर पर ही बीतता था। ऋतिक के मुताबिक हकलाने की आदत दूर करने के लिए उन्होंने अपनी जुबान और जबड़े के बीच संतुलन साधना शुरू किया।
इस बारे में ऋतिक ने बताया कि जब मैं एक टीनएजर हुआ तो मैंने तय कर लिया था कि मुझे एक्टर बनना है और मैंने अपनी कमजोरी पर काम करना शुरू कर दिया। मैं किसी अक्षर पर ना अटक जाऊं इसके लिए मैंने A से Z तक के अक्षरों को अलग-अलग तरीकों से पढ़ना शुरू किया। मुझे याद है एक बार, मैंने 36 घंटे तक एक वाक्य को साफ बोलने की प्रैक्टिस की जिससे मैं अपने कुक को बिना अटके ये बता सकूं कि मुझे खाने में क्या चाहिए। ऋतिक की पहली फिल्म कहो ना प्यार है की रिलीज के बाद एक अवॉर्ड फंक्शन में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
ऋतिक ने बताया कि जब मुझे दुबई में हुए एक अवॉर्ड फंक्शन में बेस्ट डेब्यू का अवॉर्ड मिला तो मैं अपनी स्पीच में आई लव यू दुबई कहना चाहता था। मगर मैं दुबई शब्द ठीक से नहीं बोल पा रहा था। मैं अपने होटल के कमरे में इसकी प्रैक्टिस करना चाहता था लेकिन मुझे ये चिल्ला कर बोलना था इसलिए मैं ये अपने कमरे में नहीं कर सकता था। होटल के उस कमरे में एक बड़ी अलमारी थी। मैंने खुद को उस अलमारी में बंद किया और वहां दुबई बोलने की प्रैक्टिस की। आखिरकार मैंने अवॉर्ड फंक्शन में ये वाक्य बिना अटके कह डाला।
ऋतिक ने बताया कि आज भी रात को सोने से पहले एक घंटे स्पीच थेरेपी लेते हैं ताकि उनका आत्मविश्वास बना रहे। हाल ही में उन्होंने एक स्पीच थेरेपी इंस्टीट्यूट खोला है, ताकि उनके जैसे लोगों को मदद मिल सके।
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फराह खान के टीवी शो तेरे-मेरे बीच में में ऋतिक ने खुद ये खुलासा किया कि वे आज भी एक घंटे रोज स्पीच थेरेपी लेते हैं, जिससे कि वो दोबारा हकलाना ना शुरू कर दें। ऋतिक ने बताया कि डॉक्टर ने उनसे कहा था कि तुम कभी एक्टर नहीं बन पाओगे। तुम 21 साल के हो, कुछ और क्यों नहीं करते।
ऋतिक जब छह साल के थे तभी उन्हें एहसास हो गया कि वो हकलाते हैं। उनकी जिंदगी में कई बार शर्मिंदगी भरे पल आए, जब वो किसी को अपनी बात नहीं समझा पाते थे। यहां तक कि वो ये भी नहीं बोल पाते थे कि वो एक्टर बनना चाहते हैं।
ऋतिक को कभी डॉक्टरों ने ये भी साफ कह दिया था कि वो पूरी जिंदगी में कभी डांस नहीं कर सकते क्योंकि बचपन में ऋतिक की पीठ में डिस्क प्रॉब्लम थी। उनका ज्यादातर वक्त बिस्तर पर ही बीतता था। ऋतिक के मुताबिक हकलाने की आदत दूर करने के लिए उन्होंने अपनी जुबान और जबड़े के बीच संतुलन साधना शुरू किया।
इस बारे में ऋतिक ने बताया कि जब मैं एक टीनएजर हुआ तो मैंने तय कर लिया था कि मुझे एक्टर बनना है और मैंने अपनी कमजोरी पर काम करना शुरू कर दिया। मैं किसी अक्षर पर ना अटक जाऊं इसके लिए मैंने A से Z तक के अक्षरों को अलग-अलग तरीकों से पढ़ना शुरू किया। मुझे याद है एक बार, मैंने 36 घंटे तक एक वाक्य को साफ बोलने की प्रैक्टिस की जिससे मैं अपने कुक को बिना अटके ये बता सकूं कि मुझे खाने में क्या चाहिए। ऋतिक की पहली फिल्म कहो ना प्यार है की रिलीज के बाद एक अवॉर्ड फंक्शन में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
ऋतिक ने बताया कि जब मुझे दुबई में हुए एक अवॉर्ड फंक्शन में बेस्ट डेब्यू का अवॉर्ड मिला तो मैं अपनी स्पीच में आई लव यू दुबई कहना चाहता था। मगर मैं दुबई शब्द ठीक से नहीं बोल पा रहा था। मैं अपने होटल के कमरे में इसकी प्रैक्टिस करना चाहता था लेकिन मुझे ये चिल्ला कर बोलना था इसलिए मैं ये अपने कमरे में नहीं कर सकता था। होटल के उस कमरे में एक बड़ी अलमारी थी। मैंने खुद को उस अलमारी में बंद किया और वहां दुबई बोलने की प्रैक्टिस की। आखिरकार मैंने अवॉर्ड फंक्शन में ये वाक्य बिना अटके कह डाला।
ऋतिक ने बताया कि आज भी रात को सोने से पहले एक घंटे स्पीच थेरेपी लेते हैं ताकि उनका आत्मविश्वास बना रहे। हाल ही में उन्होंने एक स्पीच थेरेपी इंस्टीट्यूट खोला है, ताकि उनके जैसे लोगों को मदद मिल सके।
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सम्मोहन चिकित्सा द्वारा हकलाना, तुतलाना
प्राय: सभी क्रियागत रोगो मे सम्मोहन लाभदायक है कुछ ऐसे शारीरक रोग होते है जिनके मूल कारण तो मनोवैज्ञानिक होते है, लेकिन उनके साथ शारीरक कारण भी मिश्रित होते है,ऐसे रोगो मे शारीरक चिकित्सा भी होनी चाहिए । सम्मोहन चिकित्सा द्वारा बुरी आदते शराब, सिगरेट से पुर्ण छुटकारा दिलाया जा सकता है । सम्मोहन चिकित्सा द्वारा अनेक निम्न रोगो मे लाभ होता है । सिरदर्द, कमर दर्द, अनिद्रा, मानसिक तनाव, विषाद, लकवा, मिर्गी, कमजोर यादाश्त, हकलाना, तुतलाना, ह्रदय रोग, डर, नंपुसकता, कब्ज, मोटापा, कमजोर आखें, मनोविकार इत्यादि।
बहुत से लोगो की धारणा है की केवल कमजोर इच्छा-शक्ति वाले व्यक्ति को ही सम्मोहित किया जा सकता है, लेकिन यह गलत है, इसके विपरीत द्र्ड इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति को आसानी से सम्मोहित किया जा सकता । हर व्यक्ति को सम्मोहित करने का तरीका समान नही हो सकता । व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर रहता है । पात्र के सुझाव ग्रहण करने की क्षमता को बहुत बढाया जा सकता है उसे कहा जाए कि तुम अभिनेता दिलीप कुमार हो तो वह दिलीप कुमार जैसी अदा दिखलाएगा । अपने को दिलीप कुमार ही मान बैठेगा । सम्मोहन की तन्द्रा मे कभी कभी पात्र को वे सुझाव भी दिए जाते है जिनका संबंध सत्य से परे होता है सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति को उसके बचपन की किसी भी अवस्था तक ले जाया जा सकता है अपने गर्भावस्था तक के विषय मे व्यक्ति बता सकता है कुछ सम्मोहन शास्त्रियों का दावा है कि पिछले जन्म के बारे मे भी पात्र से बातें मालुम कर सकते है । इस पर खोज और शोध का सिलसिला जारी है इस मे कुछ आंशिक सफ़लता मिली है अभी हाल ही मे दो तीन व्यक्तियों को सम्मोहित किया और इस लौटाने की प्रक्रिया मे उन्हे धीरे धीरे गर्भावस्था और पिछले पिछले जन्म तक ले जाया गया ।
इसी तरह एक दुसरी लड़ ने बताया कि वह गुजरांवाला के किसी बहुत बड़े हिन्दु परिवार पैदा हुई थी । बचपन मे किसी बिमारी के कारण इसकी मृत्यु हो गई थी । यदपि यह पता लगाना भले ही असंभव हो तथापि किसी भी व्यक्ति को उसकी बचपन की स्थिति तक तो लौटाया जा सकता है । एक रोगिनी की आखें 12 वर्ष की उम्र मे खराब हो गई थी, तब से वह निरंतर चश्मा लगाया करती थी । सम्मोहन तन्द्रा के दौरान जब रोगिनी को 10 वर्ष की अवस्था मे ले जाया गया तो वह बिना चश्मा के पढने लगी । जो परेशानियां उसे चश्मा नही लगाने से होती थी अब चश्मा लगाने से होने लगी । इसके अतिरिक्त व्यक्ति जब जिस उम्र मे ले जाया जाए वह अपनी इस अवस्था की सारी छिपी या प्रगट बाते बतला देगा 76 प्रतिशत तक बातें इनमे सही निकलती है । सम्मोहन मे सम्मोहन करने वाले और सम्मोहित किए जाने वाले के एक तरह का संबंध जुड़ जाता है । जो भी सुझाव वह देता है पात्र सहजता से मानता चला जाता है । क्या सम्मोहन हर व्यक्ति पर किया जा सकता है ? अब तक इस पर व्यापक रुप से सर्वेक्षण नही किया गया है । कहीं-कहीं पर सामूहिक रुप से सम्मोहित करने के परीक्षण किए गए । कुल 5 वर्गो मे सबको विभाजित किया जा सकता है - 1 कुछ लोग सम्मोहित नही होते, 2 कुछ मांसपेशियो का तनाव कम हो जाता है और पलकें झपकने लगती है, 3 कुछ लोग तन्द्रा की स्थिति मे चला जाते है और छूने पर कुछ भी अनुभव नही करते है, 4 इस वर्ग के लोग समाधिस्त हो जाते है । ये उस समय भी सुझाव मानते है और तन्द्रा टुट जाने पर भी सुझावो का पालन करते है केवल 15 प्रतिशत लोग पहले वर्ग मे आते है, जिन्हे आसानी से सम्मोहित हो जाते है । 40 प्रतिशत सो जाते है और छुकर कुछ न अनुभव करने की स्थिति मे उन्हे पहुचाया जा सकता है । 15 प्रतिशत को समाधिस्त अवस्था तक पहुचाया जा सकता है तथा शेष 20 प्रतिशत को गहन समाधि अवस्था तक पहुचाया जाता है इस सारे प्रयोगो से यह बात सिद्ध होती है की शायद सभी व्यक्तियों को सम्मोहित किया जा सकता है यदि सम्मोहन करने वाले का अपने पात्र से संबंध जुड़ जाए । हो सकता है सम्मोहित होने पर व्यक्ति दिए गए सुझावों का पालन करता है तन्द्रा मे ही नही, तन्द्रा के बाद भी उन सुझावो का पालन करना अनिवार्य समझता है । ये सुझाव इतने प्रभावकारी होते है कि इनसे व्यक्ति के बहुत से मानसिक रोग दुर किए जा सकते है किसी को तन्द्रा मे सुझाव दिया जाए सिगरेट पीते ही तुम्हारा सिर भारी होने लगेगा और तुम्हें चक्कर आएगें । जागने जब कभी यह सिगरेट पीने का प्रयास करेगा, उसका सिर भारी हो उठेगा और चक्कर आने लगेगें। इस तरह से उसे वस्तु के प्रति अरुचि पैदा हो जाएगी । इसी तरह शराब, जुआ आदि बुरी लतों से व्यक्ति आसानी से मुक्त हो सकता है मानसिक व्याधियां ही बहुत सी व्याधियो की जड़ है मानसिक रुप से यदि व्यक्ति को स्वस्थ, प्रफ़ुल्ल रखा जा सके तो संसार की आधि से अधिक बुराईयां समाप्त हो सकती है । हमारे मन एवं मस्तिष्क में बहुत सी ग्रन्थियां पैदा हो जाती है सम्मोहन से उनका कारण ढुंढ कर उनका निवारण किया जा सकता है बहुत सी पीड़ाओं एंव बिमारियों का जन्म हमारे विश्वास एंव संवेग के कारण होता है महिलाओं मे बचपन से यह विश्वास भर दिया जाता है कि प्रसव के समय उन्हे अत्यधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है यह बात हर बालिका के मन मे घर कर जाती है । इसलिए प्रसव के दौरान उसका अचेतन उसी के दर्द के अनुसार दर्द महसुस करने के लिए विवश करता है संसार के दुसरे कि स्त्रियों के अनुभवो से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रसव के समय स्त्री को बहुत अधिक दर्द महसुस करने कि जरुरी नही । विभिन्न अंगो को सम्मोहन द्वारा सुन्न करके आसानी से आप्रेशन किया जा सकता है रोगी को पता ही नही चलेगा की आप्रेशन किया जा रहा है मेरे पास एक ऐसा बालक आया जो मानसिक रोगी था । जिसे घर वालो ने ही नही अस्पताल वालो ने भी पागल घोषित कर दिया था । उन्होने उसके अच्छे होने की सभी संभावनाए छोड़ दी थी, इस बालक की सारी बातें सुनकर पता लगा कि बालक प्यार और सहानुभूति का भूखा है इसलिए ऐसा करता रहता था । सम्मोहन चिकित्सा के दौरान तन्द्रावस्था में बालक ने रोग का उपरोक्त कारण बताया । जब उसके माता-पिता को समझाने पर अपने व्यवहार मे परिवर्तन किया जिससे बालक अपने उपेक्षित न समझे तब इसके फ़लस्वरुप बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया । जब तक मानसिक रोगी के रोग का मुल कारण न खोजा जाए, तब तक कोई भी सुझाव कारगर न हो पाता । कई बार एक विकार को समाप्त करने मे कई और विकारो को जन्म हो जाता है । सम्मोहन तन्द्रा में उस मुख्य ग्रन्थि का शीघ्र पता चल जाता है जो रोगी के विकास मे बाधक बनी हुई थी। एक रोगी सहानुभूति की आवश्यकता अनुभव पड़ने पर वह दमे के दौरे को आमत्रिंत कर लेता था जब उसके परिवार को हकीकत मालुम पडी और उनके व्यवहार मे परिवर्तन आया, रोगी के दौरे मे सुधार होने लगा । मेरे मतानुसार स्म्मोहन चिकित्सा तभी चिरकालिक सफ़ल सिद्ध हो सकती है जब रोगी के रोग से संबंधित लोगो की भी स्वभाव परिवर्तन हेतु चिकित्सा की जाए। अनेक विद्दार्थियों की स्मरण शक्ति मे चम्तकारिक सुधार सम्मोहन चिकित्सा के बाद आया । सम्मोहन द्वारा कार्यक्षमता मे भी वृद्धि कुछ लोगो मे की गई। आजकल रुस, अमेरिका, फ़्रांस आदि देशो मे सम्मोहन के माधयम से बहुत कार्य किए जा रहे है। किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखने से पुर्व उसे सम्मोहित किया जाता है और सुझाव दिए जाते है कि उस क्षेत्र मे अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए उसे क्या क्या करना चाहिए। बहुत सी जगहों मे तो अभिनेताओं, लेखको और चित्रकारो को भी सुझाव दिए जा रहे है, ताकि वे अपन क्षेत्र मे बहुत अधिक सफ़लता प्राप्त करें सकें । कम समय मे विद्दार्थी को अधिक से अधिक सिखाने के लिए भी सम्मोहन का सहारा लिया जा रहा है रोग 2 प्रकार के होते है। एक वे जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पुर्णत: शारीरक होते है इन्हे शरीर रोग कहा जाता है। दुसरे वे जिनके मूलत: मनौविज्ञानिक होते है, लेकिन लक्षण पुर्णत: शारीरक होते है उनमें सम्मोहन से कोई लाभ नही होता । हां आपरेशन, दंत, प्रसुति आदि मे सम्मोहन द्वारा उनको पीड़ारहित बनाया जा सकता है अनेक शारीरक रोग ऐसे भी होते है जिनके कारण मनौविज्ञानिक होते है ऐसे रोगो को क्रियागत्त रोग (फ़लस्वरुप डिसीस) कहते है । प्राय: सभी क्रियागत रोगो मे सम्मोहन लाभदायक है कुछ ऐसे शारीरक रोग भी होते है जिनके मूल कारण तो मनौविज्ञानिक होते है, लेकिन उसके साथ कुछ शारीरक कारण भी मिश्रित होते है, ऐसे रोगो मे शारीरक चिकित्सा के साथ सम्मोहन चिकित्सा होनी चाहिए । सम्मोहन चिकित्सा द्वारा बुरी आदते शराब, सिगरेट से पुर्ण छुटकारा दिलाया जा सकता है सम्मोहन चिकित्सा द्वारा अनेक रोगी निम्न रोगो से लाभान्वित हुए।
सिरदर्द, कमर दर्द, पीठ दर्द, अनिद्रा, मानसिक तनाव, विषाद, लकवा, मिर्गी, कमजोर यादाश्त, हकलाना, तुतलाना, ह्रदय रोग, डर, नपुंसकता, कब्ज, मोटापा, कमजोर आखें, मनोविकार एंव अन्य ।
अपराधियों के अपराध का पता लगाने मे सम्मोहन बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है अपराधी को तन्द्रा की स्थिति मे पहुचाकर उसके जीवन के सारे अज्ञात रहस्य उजागर किए जा सकते है मैने बहुत से रोगियो का इलाज टेलीफ़ोन द्वारा भी किए है वह दिन दुर नही जब सम्मोहन चिकित्सा अपने क्षेत्र मे अस्वस्थ और स्वस्थ व्यक्तियो को रोगो के अज्ञात कारणो का पता करके लाभान्वित कर सकेगा ।
म्मोहन चिकित्सा के नए आयाम तंत्र मंत्र मन्त्र वशीकरण तन्त्र मन्त्र महामृत्य गायत्री सरस्वती मंत्र सम्मोहन महामृत्युंजयर तांत्रिक साधना वशीकरण वशीकरण कामदेव और जादू त्राटक साधना सम्मोहित करने त्राटक का जप तन्त्र शास्त्र सिद्ध स्तोत्र यन्त्र का जाप सरस्वती कात्यायनी सरस्वती सरस्वती साधना वशीकरण कर
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बहुत से लोगो की धारणा है की केवल कमजोर इच्छा-शक्ति वाले व्यक्ति को ही सम्मोहित किया जा सकता है, लेकिन यह गलत है, इसके विपरीत द्र्ड इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति को आसानी से सम्मोहित किया जा सकता । हर व्यक्ति को सम्मोहित करने का तरीका समान नही हो सकता । व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर रहता है । पात्र के सुझाव ग्रहण करने की क्षमता को बहुत बढाया जा सकता है उसे कहा जाए कि तुम अभिनेता दिलीप कुमार हो तो वह दिलीप कुमार जैसी अदा दिखलाएगा । अपने को दिलीप कुमार ही मान बैठेगा । सम्मोहन की तन्द्रा मे कभी कभी पात्र को वे सुझाव भी दिए जाते है जिनका संबंध सत्य से परे होता है सम्मोहन के द्वारा व्यक्ति को उसके बचपन की किसी भी अवस्था तक ले जाया जा सकता है अपने गर्भावस्था तक के विषय मे व्यक्ति बता सकता है कुछ सम्मोहन शास्त्रियों का दावा है कि पिछले जन्म के बारे मे भी पात्र से बातें मालुम कर सकते है । इस पर खोज और शोध का सिलसिला जारी है इस मे कुछ आंशिक सफ़लता मिली है अभी हाल ही मे दो तीन व्यक्तियों को सम्मोहित किया और इस लौटाने की प्रक्रिया मे उन्हे धीरे धीरे गर्भावस्था और पिछले पिछले जन्म तक ले जाया गया ।
इसी तरह एक दुसरी लड़ ने बताया कि वह गुजरांवाला के किसी बहुत बड़े हिन्दु परिवार पैदा हुई थी । बचपन मे किसी बिमारी के कारण इसकी मृत्यु हो गई थी । यदपि यह पता लगाना भले ही असंभव हो तथापि किसी भी व्यक्ति को उसकी बचपन की स्थिति तक तो लौटाया जा सकता है । एक रोगिनी की आखें 12 वर्ष की उम्र मे खराब हो गई थी, तब से वह निरंतर चश्मा लगाया करती थी । सम्मोहन तन्द्रा के दौरान जब रोगिनी को 10 वर्ष की अवस्था मे ले जाया गया तो वह बिना चश्मा के पढने लगी । जो परेशानियां उसे चश्मा नही लगाने से होती थी अब चश्मा लगाने से होने लगी । इसके अतिरिक्त व्यक्ति जब जिस उम्र मे ले जाया जाए वह अपनी इस अवस्था की सारी छिपी या प्रगट बाते बतला देगा 76 प्रतिशत तक बातें इनमे सही निकलती है । सम्मोहन मे सम्मोहन करने वाले और सम्मोहित किए जाने वाले के एक तरह का संबंध जुड़ जाता है । जो भी सुझाव वह देता है पात्र सहजता से मानता चला जाता है । क्या सम्मोहन हर व्यक्ति पर किया जा सकता है ? अब तक इस पर व्यापक रुप से सर्वेक्षण नही किया गया है । कहीं-कहीं पर सामूहिक रुप से सम्मोहित करने के परीक्षण किए गए । कुल 5 वर्गो मे सबको विभाजित किया जा सकता है - 1 कुछ लोग सम्मोहित नही होते, 2 कुछ मांसपेशियो का तनाव कम हो जाता है और पलकें झपकने लगती है, 3 कुछ लोग तन्द्रा की स्थिति मे चला जाते है और छूने पर कुछ भी अनुभव नही करते है, 4 इस वर्ग के लोग समाधिस्त हो जाते है । ये उस समय भी सुझाव मानते है और तन्द्रा टुट जाने पर भी सुझावो का पालन करते है केवल 15 प्रतिशत लोग पहले वर्ग मे आते है, जिन्हे आसानी से सम्मोहित हो जाते है । 40 प्रतिशत सो जाते है और छुकर कुछ न अनुभव करने की स्थिति मे उन्हे पहुचाया जा सकता है । 15 प्रतिशत को समाधिस्त अवस्था तक पहुचाया जा सकता है तथा शेष 20 प्रतिशत को गहन समाधि अवस्था तक पहुचाया जाता है इस सारे प्रयोगो से यह बात सिद्ध होती है की शायद सभी व्यक्तियों को सम्मोहित किया जा सकता है यदि सम्मोहन करने वाले का अपने पात्र से संबंध जुड़ जाए । हो सकता है सम्मोहित होने पर व्यक्ति दिए गए सुझावों का पालन करता है तन्द्रा मे ही नही, तन्द्रा के बाद भी उन सुझावो का पालन करना अनिवार्य समझता है । ये सुझाव इतने प्रभावकारी होते है कि इनसे व्यक्ति के बहुत से मानसिक रोग दुर किए जा सकते है किसी को तन्द्रा मे सुझाव दिया जाए सिगरेट पीते ही तुम्हारा सिर भारी होने लगेगा और तुम्हें चक्कर आएगें । जागने जब कभी यह सिगरेट पीने का प्रयास करेगा, उसका सिर भारी हो उठेगा और चक्कर आने लगेगें। इस तरह से उसे वस्तु के प्रति अरुचि पैदा हो जाएगी । इसी तरह शराब, जुआ आदि बुरी लतों से व्यक्ति आसानी से मुक्त हो सकता है मानसिक व्याधियां ही बहुत सी व्याधियो की जड़ है मानसिक रुप से यदि व्यक्ति को स्वस्थ, प्रफ़ुल्ल रखा जा सके तो संसार की आधि से अधिक बुराईयां समाप्त हो सकती है । हमारे मन एवं मस्तिष्क में बहुत सी ग्रन्थियां पैदा हो जाती है सम्मोहन से उनका कारण ढुंढ कर उनका निवारण किया जा सकता है बहुत सी पीड़ाओं एंव बिमारियों का जन्म हमारे विश्वास एंव संवेग के कारण होता है महिलाओं मे बचपन से यह विश्वास भर दिया जाता है कि प्रसव के समय उन्हे अत्यधिक कष्ट का सामना करना पड़ता है यह बात हर बालिका के मन मे घर कर जाती है । इसलिए प्रसव के दौरान उसका अचेतन उसी के दर्द के अनुसार दर्द महसुस करने के लिए विवश करता है संसार के दुसरे कि स्त्रियों के अनुभवो से यह स्पष्ट हो गया है कि प्रसव के समय स्त्री को बहुत अधिक दर्द महसुस करने कि जरुरी नही । विभिन्न अंगो को सम्मोहन द्वारा सुन्न करके आसानी से आप्रेशन किया जा सकता है रोगी को पता ही नही चलेगा की आप्रेशन किया जा रहा है मेरे पास एक ऐसा बालक आया जो मानसिक रोगी था । जिसे घर वालो ने ही नही अस्पताल वालो ने भी पागल घोषित कर दिया था । उन्होने उसके अच्छे होने की सभी संभावनाए छोड़ दी थी, इस बालक की सारी बातें सुनकर पता लगा कि बालक प्यार और सहानुभूति का भूखा है इसलिए ऐसा करता रहता था । सम्मोहन चिकित्सा के दौरान तन्द्रावस्था में बालक ने रोग का उपरोक्त कारण बताया । जब उसके माता-पिता को समझाने पर अपने व्यवहार मे परिवर्तन किया जिससे बालक अपने उपेक्षित न समझे तब इसके फ़लस्वरुप बालक पूर्ण स्वस्थ हो गया । जब तक मानसिक रोगी के रोग का मुल कारण न खोजा जाए, तब तक कोई भी सुझाव कारगर न हो पाता । कई बार एक विकार को समाप्त करने मे कई और विकारो को जन्म हो जाता है । सम्मोहन तन्द्रा में उस मुख्य ग्रन्थि का शीघ्र पता चल जाता है जो रोगी के विकास मे बाधक बनी हुई थी। एक रोगी सहानुभूति की आवश्यकता अनुभव पड़ने पर वह दमे के दौरे को आमत्रिंत कर लेता था जब उसके परिवार को हकीकत मालुम पडी और उनके व्यवहार मे परिवर्तन आया, रोगी के दौरे मे सुधार होने लगा । मेरे मतानुसार स्म्मोहन चिकित्सा तभी चिरकालिक सफ़ल सिद्ध हो सकती है जब रोगी के रोग से संबंधित लोगो की भी स्वभाव परिवर्तन हेतु चिकित्सा की जाए। अनेक विद्दार्थियों की स्मरण शक्ति मे चम्तकारिक सुधार सम्मोहन चिकित्सा के बाद आया । सम्मोहन द्वारा कार्यक्षमता मे भी वृद्धि कुछ लोगो मे की गई। आजकल रुस, अमेरिका, फ़्रांस आदि देशो मे सम्मोहन के माधयम से बहुत कार्य किए जा रहे है। किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखने से पुर्व उसे सम्मोहित किया जाता है और सुझाव दिए जाते है कि उस क्षेत्र मे अधिक कुशलता से कार्य करने के लिए उसे क्या क्या करना चाहिए। बहुत सी जगहों मे तो अभिनेताओं, लेखको और चित्रकारो को भी सुझाव दिए जा रहे है, ताकि वे अपन क्षेत्र मे बहुत अधिक सफ़लता प्राप्त करें सकें । कम समय मे विद्दार्थी को अधिक से अधिक सिखाने के लिए भी सम्मोहन का सहारा लिया जा रहा है रोग 2 प्रकार के होते है। एक वे जिनके कारण और कार्यक्षेत्र पुर्णत: शारीरक होते है इन्हे शरीर रोग कहा जाता है। दुसरे वे जिनके मूलत: मनौविज्ञानिक होते है, लेकिन लक्षण पुर्णत: शारीरक होते है उनमें सम्मोहन से कोई लाभ नही होता । हां आपरेशन, दंत, प्रसुति आदि मे सम्मोहन द्वारा उनको पीड़ारहित बनाया जा सकता है अनेक शारीरक रोग ऐसे भी होते है जिनके कारण मनौविज्ञानिक होते है ऐसे रोगो को क्रियागत्त रोग (फ़लस्वरुप डिसीस) कहते है । प्राय: सभी क्रियागत रोगो मे सम्मोहन लाभदायक है कुछ ऐसे शारीरक रोग भी होते है जिनके मूल कारण तो मनौविज्ञानिक होते है, लेकिन उसके साथ कुछ शारीरक कारण भी मिश्रित होते है, ऐसे रोगो मे शारीरक चिकित्सा के साथ सम्मोहन चिकित्सा होनी चाहिए । सम्मोहन चिकित्सा द्वारा बुरी आदते शराब, सिगरेट से पुर्ण छुटकारा दिलाया जा सकता है सम्मोहन चिकित्सा द्वारा अनेक रोगी निम्न रोगो से लाभान्वित हुए।
सिरदर्द, कमर दर्द, पीठ दर्द, अनिद्रा, मानसिक तनाव, विषाद, लकवा, मिर्गी, कमजोर यादाश्त, हकलाना, तुतलाना, ह्रदय रोग, डर, नपुंसकता, कब्ज, मोटापा, कमजोर आखें, मनोविकार एंव अन्य ।
अपराधियों के अपराध का पता लगाने मे सम्मोहन बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है अपराधी को तन्द्रा की स्थिति मे पहुचाकर उसके जीवन के सारे अज्ञात रहस्य उजागर किए जा सकते है मैने बहुत से रोगियो का इलाज टेलीफ़ोन द्वारा भी किए है वह दिन दुर नही जब सम्मोहन चिकित्सा अपने क्षेत्र मे अस्वस्थ और स्वस्थ व्यक्तियो को रोगो के अज्ञात कारणो का पता करके लाभान्वित कर सकेगा ।
म्मोहन चिकित्सा के नए आयाम तंत्र मंत्र मन्त्र वशीकरण तन्त्र मन्त्र महामृत्य गायत्री सरस्वती मंत्र सम्मोहन महामृत्युंजयर तांत्रिक साधना वशीकरण वशीकरण कामदेव और जादू त्राटक साधना सम्मोहित करने त्राटक का जप तन्त्र शास्त्र सिद्ध स्तोत्र यन्त्र का जाप सरस्वती कात्यायनी सरस्वती सरस्वती साधना वशीकरण कर
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हकलाना और उनके प्रभाव
भाषण कठिनाइयाँ और उनके प्रभाव
यदि आप अपने भाषण के साथ कठिनाइयों है, तो आप अकेले नहीं हैं. ताजा आंकड़े कहते हैं कि लोगों के ऊपर एक प्रतिशत ब्रिटेन में एक हकलाना या हकलाना से पीड़ित हैं. इस अनुच्छेद के प्रभाव है कि बड़बड़ा रहे एक व्यक्ति के जीवन पर हो सकता है वर्णन करता है.
मैं किसी को जो एक या हकलाना क्या कुछ लोग एक हकलाना है कि मूल रूप से अठारह वर्ष के लिए अपना जीवन बर्बाद कर दिया था फोन पर काबू पाने किया है. बाईस साल की उम्र में, मैंने तय किया कि यह समय के प्रवाह को प्राप्त करने का प्रयास किया गया. बहुत मेहनत से काम करने के करीब एक साल बाद, मैं हकलाना दूर एक बार और सभी के लिए सफल रही है.
बड़बड़ा रहे विभिन्न तरीकों से लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन ये जिंदगी मैं मुश्किल पाया के पहलुओं थे:
लोगों का परिचय
खाद्य या पेय आदेश
टेलीफोन पर बोलते हुए
साक्षात्कार में शामिल
एक प्रेमिका को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा
दोस्त या परिवार के साथ सामाजिकता
सामान्य में हकलाना मुझे जीवन में दूसरा सबसे अच्छा और स्वीकार किया जीवन एक बहुत बड़ा संघर्ष किया. मैं एक विकलांगता बड़बड़ा पाया गया था और हमेशा के लिए हकलाना पिटाई पर तरीकों की तलाश में.
मैं साल की उम्र से भाषण चिकित्सा भाग चार या पांच. मेरे दृष्टिकोण संभवतः नहीं गया क्या था है अपने मन में चाहिए, मैंने हमेशा माना है कि वे नहीं सच में समझ के रूप में खुद को thay था एक हकलाना था कभी नहीं सकते कि मैं क्या देख रहा था.
स्टीव हिल सहित वेबसाइटों की एक संख्या
यदि आप अपने भाषण के साथ कठिनाइयों है, तो आप अकेले नहीं हैं. ताजा आंकड़े कहते हैं कि लोगों के ऊपर एक प्रतिशत ब्रिटेन में एक हकलाना या हकलाना से पीड़ित हैं. इस अनुच्छेद के प्रभाव है कि बड़बड़ा रहे एक व्यक्ति के जीवन पर हो सकता है वर्णन करता है.
मैं किसी को जो एक या हकलाना क्या कुछ लोग एक हकलाना है कि मूल रूप से अठारह वर्ष के लिए अपना जीवन बर्बाद कर दिया था फोन पर काबू पाने किया है. बाईस साल की उम्र में, मैंने तय किया कि यह समय के प्रवाह को प्राप्त करने का प्रयास किया गया. बहुत मेहनत से काम करने के करीब एक साल बाद, मैं हकलाना दूर एक बार और सभी के लिए सफल रही है.
बड़बड़ा रहे विभिन्न तरीकों से लोगों को प्रभावित करता है, लेकिन ये जिंदगी मैं मुश्किल पाया के पहलुओं थे:
लोगों का परिचय
खाद्य या पेय आदेश
टेलीफोन पर बोलते हुए
साक्षात्कार में शामिल
एक प्रेमिका को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा
दोस्त या परिवार के साथ सामाजिकता
सामान्य में हकलाना मुझे जीवन में दूसरा सबसे अच्छा और स्वीकार किया जीवन एक बहुत बड़ा संघर्ष किया. मैं एक विकलांगता बड़बड़ा पाया गया था और हमेशा के लिए हकलाना पिटाई पर तरीकों की तलाश में.
मैं साल की उम्र से भाषण चिकित्सा भाग चार या पांच. मेरे दृष्टिकोण संभवतः नहीं गया क्या था है अपने मन में चाहिए, मैंने हमेशा माना है कि वे नहीं सच में समझ के रूप में खुद को thay था एक हकलाना था कभी नहीं सकते कि मैं क्या देख रहा था.
स्टीव हिल सहित वेबसाइटों की एक संख्या
माता पिता & हकलाना
जब एक व्यक्ति को एक हकलाना या एक माता पिता का एहसास है कि उनके बच्चे को हकलाना वे अक्सर बाहर कारणों का पता लगाने चाहते विकसित कर रहा है है. तो एक हकलाना क्या कारण हैं? जवाब है बहुत सी बातें हकलाना शुरू करने के लिए किसी को ट्रिगर कर सकते हैं. ये उनमें से कुछ हैं: यह एक दर्दनाक घटना यह परिवार के लोगों में चला सकते हैं स्कूल में एक दोस्त की नकल कर सकते हैं जो एक हकलाना है और फिर यह एक आक्रामक रिश्तेदार पिछले साल मैं एक महिला ग्राहक था पर चिपक जाती है, जो मुझे कहा था कि वह कैसे हो सकता है एक हकलाना विकसित की है. वह धाराप्रवाह था चौबीस साल की उम्र तक. इस उम्र में वह पहली बार, वह बहुत खुश था और एक माँ बनने के बारे में संभावनाओं के बारे में उत्साहित के लिए गर्भवती बन गया. वह जन्म और उसके दोस्तों के बारे में आशंकित था उसे घुमावदार गया है उसके कैसे दर्दनाक अनुभव कह रहा है. उसे पता था कि वे केवल चिढ़ा की कोशिश की और आराम के लिए बनाए गए थे. जन्म दिन आ गया है और दुर्भाग्य से प्रसव कड़ी particulary थी और वह बहुत बुरा कैसे यह वास्तव में किया गया के बारे में चौंक गया था. के बाद बच्चे का जन्म, जो एक स्वस्थ लड़का वह हकलाना विकसित की गई है. सभी लोग हैं, जो हकलाना यह एक कम उम्र, मेरे ग्राहकों के एक दूसरे से धाराप्रवाह था उन्नीस साल की उम्र तक. इस उम्र में वे एक कार दुर्घटना थी और यह उसे ट्रिगर हकलाना
कोई है जो एक हकलाना है मदद
कितने लोग धाराप्रवाह कभी क्या जीवन पर विचार के लिए किसी तरह एक हकलाना के साथ है? एक हकलाना के साथ जीवन के माध्यम से जा रहे हैं बहुत मुश्किल है, और कई बार हकला थोड़ा और compasion सराहना करते हैं. एक हकलाना खुद पर काबू पाने के बाद, मैं अपने दोस्तों से कुछ कहा होगा वे कैसे सोचा कि जीवन की तरह था, एक गंभीर हकलाना रहा. कहा कि मैं काफी कुछ अलग प्रतिक्रिया थी, जिनमें से कुछ मुझे जिम. नाराज: "मैं हमेशा सोचता था कि तुम थोड़ा के लिए अपने आप को माफ करना है और तुम बाहर कर दिया है कि आपके हकलाना कुछ बड़ी खतरनाक समस्या थी. यह आप की तरह बात नहीं कर सकता नहीं है महसूस किया यह सब में है? मैं भी कई बार महसूस किया है कि आप हिम्मत अभाव है, उदाहरण के लिए हमेशा पूछ टोनी तुम्हारे लिए पेय का आदेश है. "पॉल तो अपनी राय दी थी:" मैं यह काफी मजेदार है कि कई बार आप वास्तव में बात कर रही हो जाएगा अच्छी तरह से मिला है, लेकिन कुछ ही मिनटों के भीतर आपको एक शब्द भी बाहर नहीं. "Ashley में शामिल हो सकते हैं:" मैं तुम्हारे लिए एक खेद सा लगा, तुम संघर्ष देख रहा था, बहुत दर्द को देखो. "- यह एक बेहतर टिप्पणी थी! निगेल, एक और दोस्त:" मुझे खुशी है कि मैं हकलाना, नहीं है, लेकिन क्या मुझे लगता है कि तुम समझने की जरूरत है हूँ था कि तुम मुद्दों और समस्याओं के साथ केवल एक ही नहीं थे. मैं बहुत प्रभावित हूँ. मैं ज्यादातर जिम से टिप्पणी से नाराज़ हो गया था, और जवाब है कि आप इसे काबू पाने में कामयाब रहे हैं, हालांकि ":" तो तुम एक हकलाना है लगता है कि जिम तो बुरा नहीं है? ठीक है, मैं चुनौती तुम बार और व्यवस्था की हलके रंग की एक पिंट पर जाने के लिए, लेकिन जब तुम यह आदेश मैं तुम्हारे शब्दों में से कुछ पर हकलाना चाहता हूँ. "मैं उसे पता चला कि मैं कैसे उसे कहने के लिए आदेश है, जब हकलाना चाहता था आदि तो फिर मैं ने कहा: "के बाद आप शब्दों पर stammered है, मैं तुम्हें देखने के लिए कि यह कैसे लगता है और जिस तरह से लोगों को अपने आप को देखो अनुभव करना चाहता हूँ. तुम तो मैं क्या माध्यम से गया की थोड़ा और अधिक समझ सकते हैं. "जिम इस चुनौती से मना कर दिया, यहां तक कि उत्साह और हमारे समूह के विभिन्न सदस्यों से चिढ़ा की भारी राशि के बाद. एक हकलाना होने अच्छा जब कोई है जो एक हकलाना है मांगी मदद नहीं है और उन्हें अपना पूरा समर्थन प्रदान करें. मुझे में है कि मेरे कुछ दोस्तों को मेरे लिए पट्टी में जाना था और मेरे माता पिता बहुत कुछ फोन करने के लिए तैयार थे बहुत भाग्यशाली था कहता है, जैसे डॉक्टर को फोन और कार बीमा. मेरे जीवन में अन्य हालांकि समय कम, अन्य लोग मेरा मजाक बना दिया है और कई बार मैं बहुत निराश हो जाएगा और वापस ले लिया जाएगा और पता नहीं क्यों मुझे यह था जो एक हकलाना. स्टीफन हिल था -----
बचपन ka हकलाना
बचपन हकलाना
एक हकलाना बचपन में सामान्य लोगों के लिए शुरू होता है और अक्सर एक बचपन हकलाना के रूप में निर्दिष्ट है. इस बार बहुत माता पिता और बच्चे के लिए चिंतित है और यह पता है, जहां व्यक्ति कौन है हकलाना के लिए मदद मांगने के लिए मुश्किल है.
वहाँ हकलाना के कई प्रकार हैं. परिवार और दोस्तों को भी नहीं पता है कि एक व्यक्ति के वे जानते हैं कि एक हकलाना है हो सकता है. वजह यह है कि व्यक्ति को हकलाना छिपा कर सकता है, का उपयोग करके शब्द परिहार या शब्द प्रतिस्थापन.
अन्य लोगों को यह नहीं कर पा रहे हैं और क्या वे एक openely अधिक गंभीर हकलाना विचार किया जाएगा है.
एक हकलाना सामान्य अधिक हो जाता है जब एक इंसान है:
दबाव में
जब थक गया
नए लोगों की बैठक
एक असहज स्थिति में बोल
सवाल पूछ रही है, उदाहरण के लिए दिशाओं के लिए पूछ रहा
लोगों को शुरू
बड़बड़ा भी हकला के रूप में कुछ क्षेत्रों में जाना जा सकता है.
हकलाना चिकित्सा:
जो लोग एक हकलाना है जब विभिन्न चिकित्सा की मांग विकल्प हैं. वे एक भाषण चिकित्सक या भाषण रोगविज्ञानी के लिए जा सकते हैं. वैकल्पिक रूप से वे एक भाषण के पाठ्यक्रम में शामिल कर सकते हैं. इन पाठ्यक्रमों के एक समूह के आधार पर या एक से एक के आधार पर हो सकता है.
मैं व्यक्तिगत रूप से पसंद है और एक एक हकलाना पाठ्यक्रमों को सलाह के रूप में मेरा मानना है कि हर व्यक्ति जो एक हकलाना है एक और व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत प्रकार हकलाना है
एक हकलाना बचपन में सामान्य लोगों के लिए शुरू होता है और अक्सर एक बचपन हकलाना के रूप में निर्दिष्ट है. इस बार बहुत माता पिता और बच्चे के लिए चिंतित है और यह पता है, जहां व्यक्ति कौन है हकलाना के लिए मदद मांगने के लिए मुश्किल है.
वहाँ हकलाना के कई प्रकार हैं. परिवार और दोस्तों को भी नहीं पता है कि एक व्यक्ति के वे जानते हैं कि एक हकलाना है हो सकता है. वजह यह है कि व्यक्ति को हकलाना छिपा कर सकता है, का उपयोग करके शब्द परिहार या शब्द प्रतिस्थापन.
अन्य लोगों को यह नहीं कर पा रहे हैं और क्या वे एक openely अधिक गंभीर हकलाना विचार किया जाएगा है.
एक हकलाना सामान्य अधिक हो जाता है जब एक इंसान है:
दबाव में
जब थक गया
नए लोगों की बैठक
एक असहज स्थिति में बोल
सवाल पूछ रही है, उदाहरण के लिए दिशाओं के लिए पूछ रहा
लोगों को शुरू
बड़बड़ा भी हकला के रूप में कुछ क्षेत्रों में जाना जा सकता है.
हकलाना चिकित्सा:
जो लोग एक हकलाना है जब विभिन्न चिकित्सा की मांग विकल्प हैं. वे एक भाषण चिकित्सक या भाषण रोगविज्ञानी के लिए जा सकते हैं. वैकल्पिक रूप से वे एक भाषण के पाठ्यक्रम में शामिल कर सकते हैं. इन पाठ्यक्रमों के एक समूह के आधार पर या एक से एक के आधार पर हो सकता है.
मैं व्यक्तिगत रूप से पसंद है और एक एक हकलाना पाठ्यक्रमों को सलाह के रूप में मेरा मानना है कि हर व्यक्ति जो एक हकलाना है एक और व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत प्रकार हकलाना है
Tuesday, February 2, 2010
तुतलाना .हकलाता बन सकती है समस्या
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Thursday, December 24, 2009
Free Stammering Meeting (FSM )
फ्री हकलाहट मीटिंग का नाम ऍफ़ .एस ऍम मै दे रहा हु | मित्रो मै चाहता हु की हम सभी हकलाने वाले एक जगह प्रतेक रविवार को मिले और हकलाहट के सभी पहेलुऊ को बिस्तार से समझे ,मित्रो मै रविवार को आप सभी से मिलने के लिए समय देना चाहता हु ,मै चाहता हु की हम सब रविवार को मैहर में मिले और बाते करे | यदि कोई हकलाने वाला व्यक्ति है और वह रविवार को आता है हो मै उसे पूरा समय दुगा और हकलाहट की पूरी जानकारी दुगा | हमे आप लोगोसे बात करने में बहुत ख़ुशी होगी ,और गर्व भी होगा , और बहुत सी बातो पर चर्चा करना है आने में संकोच मत कीजिये अक्सर मै देखता हु की हकलाने वाले लोग मोबाईल में बात करने में संकोच करते रहते है | हमको गर्व होगा जब आप का फ़ोन आएगा ,मै पूरी लगन से ,ध्यान से , आप की बात सुनता हु , आपका स्वागत है मोबाईल में ,फ़ोन में ,मीटिंग में
Monday, December 21, 2009
How can you stammering Control
दोषतो मै आज आप से यह बताउगा की हकलाना को ठीक करने के लिए मेरे अन्दर हिम्मत कैसे आयी | मै ग्यारवी का पेपर दे रहा था तभी मेरे घर में राजदूत गाड़ी खरीदी गई | मै बहुत उत्सुक था गाड़ी चलाना सिखने के लिए ,मै पहले बंद गाड़ी को ही धकेलता था चुकी अंकल और पापा जी का डर हुआ करता था , बच्चो को गाड़ी चलाना अलाऊ नही था ,उनके घर पर न रहने पर घर के अन्दर ही गाड़ी को धकेलता था ,कभी गाड़ी में बैठ कर तो कभी गाड़ी के साथ पैदल चल कर | ऐसा १-२ माह चलता रहा ,एक दिन घर में कोई नही था तभी मै हिम्मत जुटाया और गाड़ी घर के बहार निकला और स्टार्ट करके गयर लगाया और क्लच जैसे ही छोड़ा गाड़ी बंद हो गई | बार बार यही होता और मै अन्दर से डर भी रहा था की ( अंकल आगये तो , गाड़ी भीड़ गयी तो ,गाड़ी गिर गयी तो ) लेकिन गाड़ी चलाना सीखना ही था | मै बार बार बार बार प्रयाश करता रहा सिखने के दौरान मेरे छोटे भाई को चोटभी आयी ,गाड़ी भी गिरी ,डाट भी पड़ी | फ़िर भी गाड़ी सिखा जब गाड़ी सिख रहा था तब बहुत डर था अंकल का ,गाड़ी गिरने का ,चोट लगने का ,गयर- क्लच -अक्सिलेटर -ब्रक, लगाने का | गाड़ी सिखने के बाद किसी का बिल्कुल भी डर नही रहा
शिक्षा
दोषतो एक तरफ मै गाड़ी सिख रहा था सफल हो रहा था दूसरी तरफ़ हकलाहट डिमक की तरह अन्दर ही अन्दर मुझे बर्बाद कर रही थी ,कुछ समझ में नही आरहा था की मै कैसे आंगे बढू ,क्या करू , जिस काम की सुरुआत करू उसी में हकलाहट की वजह से फ़ैल हो जाऊ
गाड़ी सिखने के बाद मै अन्दर से सोचा यार गाड़ी चलाना मै सिख सकता हु तो बोलना भी तो शीख सकता हु
और कहते है की यदि किसी काम को अन्दर से , मन से , संकल्प के साथ प्रतिज्ञा करके शुरू किया जाय तो वह उस काम का सफल रिसल्ट उसी समय तय हो जाता है, बाकि रहती है सिर्फ़ प्रोसेस | प्रोसेस कम्पलीट होने पर वही रिसल्ट मिलता है, जो आप ने शुरू में प्रतिज्ञा किया था | ये बात अवश्य है की प्रोसेस में कुछ कठिनाई ,कुछ उतर चड़ाव अवश्य आते है| यदि आप का लगन ,प्रतिज्ञा निश्चित है तो इन समश्यो को आसानी से जीता जा सकता है |
मैंने अपनी हकलाहट को कैसे कंट्रोल करना प्रारम्भ किया
मै कई स्पीच थेरापिस्ट , ई एन टी डॉक्टर से सुन चुका था और डिप्लोमा और सैकोलोजी ग्रेजू एसन से मुझे थेओरी पता हो चुकी थी की हकलाहट को कंट्रोल करने के कुछ स्टेप है
१-स्पीड धीमा करना :- स्पीड धीमा से मेरा मतलब यह नही है की विल्कुल धीमा बोलो , लेकिन सोफ्ट ,स्मूथ ,सपष्ट , बिना प्रेसर के बोलना चाहिए , लेकिन यह आसन काम नही था क्योकि हमारी आदत पीछेले २५ वर्ष से पक्की हो चुकी थी | मै जितना स्पीड कंट्रोल करता उतना ही मेरी स्पीड बढ रही थी ,मै कई बार ऐसा मह्सुश कर रहा था की यह न मुमकिन है ,बार बार प्रयाश करता और हर बार हार जाता , एक कविता को मै बार बार पढ़ता और फिर चार्ज हो जाता ,आप कविता सुनना चाहेगे
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लहरों से डर कर, नौका कभी पार नहीं होती |
कोशिश करने वालो की, कभी हार नहीं होती ||
एक नन्ही चीटी ,जब दाना लेकर चलती है |
चढ़ती दीवारों में ,सौ बार फिसलती है ||
चढं कर गिरना ,गिरकर चढ़ना न अखरता है |
मन का बिश्वश रगों में, सहस भरता है ||
आखरी उसकी मेहनत, बेकार नहीं होती |
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती ||
असफलता एक चुनौती है , स्वविकार करो |
देखो क्या कमी रह गयी है ,और सुधार करो ||
जब तक सफल न हो ,नीद जैन की त्यागो तुम |
संघ्रसों का मैदान छोड़, मत भोगो तुम||
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती
===========================================दोषतो बस यही कविता मुझे मोटीबेट करती थी और मै कभी पीछे मुड़कर देखा ही नहीं , मेरे मन में कभी ऐसी बात ही नहीं आई की मै मेरी हकलाहट ठीक नहीं होगी ,
Stammering Medicine
आप सब लोगो को बड़ी बेताबी से हकलाहट की दवाई खोजते नजर आते मै देखता हु | पहले मै भी ,यही सोचता था की कोई न कोई दवाई तो अवश्य होगी जो हमारी हकलाहट को ठीक कर देगी,कई डाक्टरों को हकलाहट के इलाज के लिए जाता था जैसे ही मन में आता की अब बोलना है की मै हकलाता हु, वैसे ही डर बोलता की- तुम्हारी बदनामी होगी मत कहो' डाक्टर हँसेगे, और मै बोलता की डॉक्टर साहब मुझे बुखार आती है , दवाई लेता और चला आता, एक बार हद तब हो गई जब मुझे बिना बुखार के, सूजी लगवानी पड़ी
दोषतो आप को हकलाहट की दवाई अवश्य मै दुगा जो मैंने खाई थी वह दवाई है विचारो को बदलने की ,थोडा थोडा डेली अपने आप को बदलने की ,हकलाहट को स्वाविकार करने की , ठीक बोलने की कोशिश करने की ,यदि आप केवल थोड़ी सा प्रयास करेगे , आपने आप को बदलने की, तो आप पायेगे की, आप तो थोड़ी प्रयास कर रहे है लेकिन भागवान आप को अधिक फल देगा | यहाँ मै कुछ बाते लिखता हु जो आप को सफलता अवश्य दिलाएगी
1- मुझे हमेशा याद रखना चाहिए की मै तनाव मुक्त्य ,निडर आत्मा विश्वाशी आराम से बोलने वाला आदमी हु |
२- आदत को सुधारना है थोडा अ आप को स्पीड धीमी करनी होगी | मै यहाँ पर एक बात कहुगा की हकलाने वाले लोग यह मानते ही नहीं की मै अधिक स्पीड से बोलता हु ,या जानते ही नहीं है की अनियंत्रित स्पीड हमारी हकलाहट का एक कारण है |
हमको कुछ बदलना पड़ेगा ,अपने आप को ,विचारो हो , स्पीच ओरगन के वोर्किंग करने के तरीको को , एक फ़ॉर्मूला याद आता है
चेंज ( अपने आप को ) = सुधार ( आप की स्पीच में )
१ स्पीड कण्ट्रोल २- आप की स्पस्ट आवाज आयेगी
२ -स्पीच ओरगोन २- चेहरा में सिकुडन ख़त्म होगी
३- हकलाना को स्वबिकर करो ३- डर दिमाग से Niklega
4-ध्यान से दुसरो की बात सुनो ४= अंसार देने ,और प्रशन पूछने का मनोबल बढेगा
५- स्माल स्माल वाक्य उपयोग करना ५=लम्बे समय तक बात कर सकते हो
दोषतो आप को हकलाहट की दवाई अवश्य मै दुगा जो मैंने खाई थी वह दवाई है विचारो को बदलने की ,थोडा थोडा डेली अपने आप को बदलने की ,हकलाहट को स्वाविकार करने की , ठीक बोलने की कोशिश करने की ,यदि आप केवल थोड़ी सा प्रयास करेगे , आपने आप को बदलने की, तो आप पायेगे की, आप तो थोड़ी प्रयास कर रहे है लेकिन भागवान आप को अधिक फल देगा | यहाँ मै कुछ बाते लिखता हु जो आप को सफलता अवश्य दिलाएगी
1- मुझे हमेशा याद रखना चाहिए की मै तनाव मुक्त्य ,निडर आत्मा विश्वाशी आराम से बोलने वाला आदमी हु |
२- आदत को सुधारना है थोडा अ आप को स्पीड धीमी करनी होगी | मै यहाँ पर एक बात कहुगा की हकलाने वाले लोग यह मानते ही नहीं की मै अधिक स्पीड से बोलता हु ,या जानते ही नहीं है की अनियंत्रित स्पीड हमारी हकलाहट का एक कारण है |
हम सबको थोडा सा स्पीड कम करना चाहिए ,बहुत से लोग कहते है की मै धीरे नहीं बोल सकता | मै आप से यह नहीं कह रहा हु की आप बिलकुल धीमा गाने जैसा बोलो ,लेकिन इतना कण्ट्रोल करो की आप के स्पीच ओरगन सही वर्क कर सके ,आप को बोलने का मौका मिले ,आप को सोचने का मौका मिले , आप की आवाज सुनने वालो को समझ में आनी चाहिए | अब सवाल यह है की मै कितना धीमा बी बोलु , आप स्याम अपनी आवाज सुनो ,और जो स्पीड आप को सुनने ,समझने में ठीक लगे वाही आप की सही स्पीड होगी ,प्रारंभ में आप थोडा और धीमा बोले तो बेहतर होगा ,लेकिन गाने जैसा नहीं बोलना चाहिए |
जब आप धीमा बोलने की कोशिश करेगे तो प्रारंभ में थोडा अटपटा लगेगा क्योकि आप अधिक स्पीड बोलने के आदि है| आप के मन में कुछ नेगतीवे विचार भी आयेगे जैसे मै कब तक धीमा बोलूगा , इतनी देर मेरी बात कौन सुनेगा , मै अभी नहीं बाद में धीरे बोलूगा , अभी यहाँ एसे ही बोलता हु बाद में सुधारुगा , सभीलोग तो स्पीड ही बोलते है वह क्यों नहीं अटकते है ,मै ही क्यों अटकता हु हमको कुछ बदलना पड़ेगा ,अपने आप को ,विचारो हो , स्पीच ओरगन के वोर्किंग करने के तरीको को , एक फ़ॉर्मूला याद आता है
चेंज ( अपने आप को ) = सुधार ( आप की स्पीच में )
१ स्पीड कण्ट्रोल २- आप की स्पस्ट आवाज आयेगी
२ -स्पीच ओरगोन २- चेहरा में सिकुडन ख़त्म होगी
३- हकलाना को स्वबिकर करो ३- डर दिमाग से Niklega
4-ध्यान से दुसरो की बात सुनो ४= अंसार देने ,और प्रशन पूछने का मनोबल बढेगा
५- स्माल स्माल वाक्य उपयोग करना ५=लम्बे समय तक बात कर सकते हो
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