Tuesday, February 2, 2010

तुतलाना .हकलाता बन सकती है समस्या


बच्चे के मुख से पहला सार्थक शब्द सुनना हर माता-पिता के लिए एक सुखद क्षण होता है। जब वह तुतलाकर बोलने की चेष्टा करता है तो उनका हृदय हर्ष से गदगद् हो जाता है। बच्चे की यह अवस्था काफी मोहक होती है, परंतु देखा गया है कि कुछ बच्चे ठीक समय पर बोलना नहीं सीख पाते। 3-4 वर्ष के होने पर भी वे बोलने की चेष्टा भी नहीं करते और कुछ बच्चे अपने अटपटे, अस्पष्ट उच्चारण के साथ थोड़े ही शब्द बोल सकते हैं। इसके साथ-साथ कुछ बच्चे 15-16 मास की आयु में बोलना शुरू तो कर देते हैं, फिर भी उनमें स्थिरता अथवा निरंतरता नहीं आती। वे एकाएक बोलना बंद कर देते हैं या बोलने में आगे बढ़ने की बजाए पीछे की ओर हटते हैं। 

अतः इन बच्चों का शब्द ज्ञान अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में अल्प या संकुचित होता है और वे शब्द जानते भी हैं तो उनमें संज्ञा शब्दों की बहुलता होती है, जिससे वे अपनी आंतरिक आवश्यकताओं व इच्छाओं को मुश्किल से व्यक्त कर पाते हैं। ये बच्चे शब्दों की अपेक्षा संकेतों का अधिक सहारा लेते हैं और ये कई ध्वनि निकाल ही नहीं सकते। जैसे- घोड़े को घोरे, काला को ताला आदि।

देर से बोलने के कार
* आई.क्यू. लेवल का कम होना : आई.क्यू. लेवल बुद्धि की एक माप है, जिसे आई.क्यू. टेस्ट द्वारा आसानी से पता किया जा सकता है। 

* सुनने की शक्ति में न्यूनता : हो सकता है बच्चे की सुनने की शक्ति कम हो, जिससे वह कई आवाजें सुन नहीं पाता और जिससे उन्हें बोल भी नहीं पाता। 

* स्मरण शक्ति कमजोर होना : आयु के साथ-साथ इनकी स्मरण शक्ति नहीं बढ़ती है। लंबे वाक्यों को सुनकर बोलने में इन्हें परेशानी होती है। 

* डेमेज (क्षति) : किसी कारणवश यदि बच्चे के वोकल कॉर्ड, इंटरनल इयर में या इनके नर्वस सिस्टम (तंत्रिकाओं) में अथवा मस्तिष्क के ब्रोंका या वरनिक्स एरिया में क्षति हो जाए, तब भी बच्चे में डिलेड स्पीच देखने में आती है। 

* कनेक्टियोनिस्ट मॉडल : उसके माता-पिता में स्पीच डिफेक्ट हो, दोनों कामकाजी हों तो बच्चों पर ध्यान न दिया जाता हो या फिर अत्यधिक लाड़-प्यार के कारण बच्चे को बोलने के लिए प्रोत्साहित न किया जाता हो। इन कारणों से भी डिलेड स्पीच देखने में आती है। 

*भावनात्मक कारण : अगर बच्चा एकाएक बोलना बंद कर दे या कम बोलने लगे, तुतलाकर या हकलाकर बोलने लगे अर्थात वाणी में कोई भी परिवर्तन जो अचानक हो तो उसके साथ बच्चे के इमोशंस जुड़े होते हैं।

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इलाज

* सबसे पहले बच्चे को नाक-कान-गले के विशेषज्ञ के पास ले जाएँ और शारीरिक कारणों का पता लगाएँ। 

* आई.क्यू. लेवल का कम या अत्यधिक कम होना : आई.क्यू. टेस्ट द्वारा पता करने के लिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास ले जाएँ। 

* अगर शारीरिक त्रुटियाँ हों तो उन्हें दूर करने का प्रयास करें। 

* घर और स्कूल में ऐसे बच्चों को बोलने के लिए प्रेरित करें। 

* बच्चे का मजाक न उड़ाएँ बल्कि प्रेम से पेश आएँ। 

* अगर बच्चे की याददाश्त कमजोर हो तो उसे विकसित करने के लिए क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। 

* स्पीच थैरेपिस्ट, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट की सलाह से बच्चे के स्पीच का विकास करने का प्रयास करें।

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