Friday, August 20, 2010

" हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! "


14 अगस्त 2010 को इस ब्लॉग पर मेरी पोस्ट पर एक साथी ने मुझे फ़ोन कर बताया की उनके परिजन शादी के लिए लड़की देख रहे हैं, पर क्या अपने होने वाले जीवनसाथी से अपनी हकलाहट की समस्या के बारे में खुलकर बात कर लेना उचित होगा? इस पर मेरी राय यह थी की हाँ, अपने होने वाले लाइफ पार्टनर से इस बारे में बात करने से जीवन की चुनौतिओं का सामना करने में आसानी होगी और बेहतर जीवनसाथी के चुनाव में भी सहायता मिलेगी.

अकसर हम लोग अपनी हकलाहट की समस्या को छिपाने की कोशिश करते हैं, और कुछ हद तक हम इसमे कामयाब भी हो जाते हैं. मेरे कई परिचित ऐसे हैं जिनसे काफी समय से परिचय है फिर भी उन्हें यह नहीं मालूम की मैं हकलाता हूँ. जहाँ तक मेरा अनुभव रहा है की हम अपनी हकलाहट की समस्या से बेवजह डरते हैं. आमतौर पर सिर्फ 20 प्रतिशत लोग ही हमारी समस्या का मजाक बनाते हैं, अधिकतर तो हमारी समस्या को गंभीरता से लेते हैं, और पूरा सहयोग करते हैं. तो हमें अब से उन 80 प्रतिशत लोगों पर ही ध्यान देना है जो हमारे प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाते हैं.

सबसे पहले तो हमें अपनी बात जल्दी से कह देने की आदत से छुटकारा पाना होगा. पहले हमें सामने वाले की बात को पूरा सुनना है, उसके बाद ही अपनी बात बोलनी है. बात करते समय आराम से बार-बार नाक से सांस लेकर बोलना चाहिए. अपने बोलने की गति को थोडा कम रखना चाहिए.

जिस प्रकार आँखें कमजोर होने पर लोग चश्मा लगते हैं, कान से कम सुनाई देने पर हियरिंग एड लगते हैं, ठीक उसी तरह हमें अपनी हकलाहट की समस्या से शरमाने की जरूरत नहीं है, इसे भी सामान्य तौर पर ले. क्योकि लगभग सभी लोग कभी ना कभी हकलाते ही हैं. मंच पर जाने से पहले कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन उनका डर दूर होते ही वे एक अच्छे वक्ता बन जाते हैं, ठीक इसी तरह हमें अपना डर दूर भगाना है.

अपनी हकलाहट की समस्या से हमें लड़ना नहीं हैं, बल्कि इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार करना है. लोगों से कहना है- " हाँ ! मैं हकलाता हूँ . . . ! " पर हकलाहट पर जल्द ही विजय पा लूँगा.

1 comment:

  1. फिर क्या हुआ आपने उनको बताये की आप हकलाते हो या नहीं बताये, फिर उसके बाद क्या हुआ में जानना चाहूँगा,
    में भी अटक अटक कर बोलता हू
    अनिल बेतुल मप्र

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